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दिन में सूर्य और रात्रि में चंद्र सी चमकेगी हमारी हिन्दी

KALAM KA KAMAL
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सभी हिंदुस्तानी भाई बहनों को और साथ ही उन सभी हिन्दी से प्रेम करने वालों को “हिन्दी राष्ट्रभाषा दिवस” की बहुत बहुत बधाई. यह अत्यंत हर्ष की बात है हिन्दी भाषा को सम्मान को सम्मान मिले. यह हर हिन्दुस्तानियों की जुबान बने. इसे यहाँ का रहनेवाला राष्ट्रीय भाषा जाने-माने और बोले. हमारी तो यही अभिलाषा है कि सारी दुनिया में शान से हिन्दी की पताका/ झण्डा लहराये. हिंदी दिवस के अवसर पर “हिन्दी भाषा” को लेकर अपने विचार और कुछ अनुभव जो अभी हाल में हुए उसे लिखना चाहा है.


विदित है, हर राष्ट्र का अपना एक “राष्ट्रध्वज “होता है एवं अपनी एक मातृभाषा कहें अथवा “राष्ट्रभाषा” होती है. जिसे उक्त देशवासी या वहाँ पर रहनेवालों द्वारा अनिवार्य होता है वहाँ की “राष्ट्रभाषा” जानना और बोलना. यद्यपि इसके अतिरिक्त भी वो अनेक भाषाओं का जान सकते हैं, जानते हैं. कहने का तात्पर्य यह कि अनेक भाषाओं का ज्ञान रखते हैं, किन्तु वहाँ अपने-अपने देश के नियमानुसार वे अपनी राष्ट्रभाषा को मुख्यतः अपनाते हैं. अर्थात वे अपनी राष्ट्रभाषा को सम्मान देते हैं और यह सर्वथा उचित भी है. हर किसी को सर्वप्रथम अपनी मातृभूमि, राष्ट्रध्वज और वहाँ की राष्ट्रभाषा का मान करना चहिये.


वर्तमान में देखा जाय तो इस द्ष्टिकोण से अपने भारत यानी हिंदुस्तान में जो लोग रहते हैं, कहने को तो हिंदुस्तानी बनते हैं. खाते हैं नमक यहाँ का पर अधिकाँश लोग देशवासियों जैसा बर्ताव नहीं करते हैं. अर्थात इनको अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी से प्रेम नहीं है. स्पष्ट दिखायी देता है, जब वो हिन्दी जानते हुए भी अंग्रेजी में बात करते हैं. दूसरी बात ऐसा भी देखा गया है कि कुछ वर्ग के लोग तो हिन्दी बोलने वालों को पसंद नहीं करते, यदि वो उनसे अंग्रेजी में बात न करे तो, यानी इतना भेद करते हैं.


इसके अतिरिक्त अंग्रेजीयत में दक्ष लोग हिन्दी भाषियों को कमतर समझते हैं. इसे विडम्बना ही कहेंगे कि आज देश स्वतंत्र हुए अर्द्धशतक दशक से अधिक वर्ष हो चुके हैं, पर लोगों की सोच नहीं बदली, बल्कि विलायती भाषा का मोह-लगाव सर चढ़कर बोलता नज़र आता है.


कैसा है ये राष्ट्र प्रेम?  कैसा है ये देशप्रेम…? जहां अपने वतन की माटी की सुगंध न सोंधी लगती हो. विदेशी परफ्यूम के आकर्षण में दीवाने  बने फिरते हो. सबसे अधिक शर्मसार करने वाली बात तो तब लगी, एक घटना उदाहरण स्वरूप देना  चाहूंगी…


बात 15 अगस्त भारत की स्वतंत्रता दिवस की है. जहाँ कोई भी विदेशी नहीं था. सभी अपने हिंदुस्तानी लोग थे फिर भी “स्वतंत्रता दिवस पर्व” अर्थात आजादी की खुशी का जश्न अंग्रेजी में मनाया जा रहा था. हर व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति इंग्लिश में ही कर रहा था. मात्र दो गीत हिन्दी में दो लड़कियों ने गाए, बाकी अन्य गीत भी बच्चे “इंग्लिश सॉन्‍ग” गा रहे थे.


समझ में नहीँ आ रहा था कि ये बोलने वाले सज्जन जो लगभग सभी 40-60 के आसपास की उम्र के होंगे, इन लोगों का ऐसा हिन्दी भाषा की उपेक्षा से पूर्ण व्यवहार अपनी नई पीढि़यों को क्या संदेश देना चाहते  हैं? क्या तिरंगा फहराकर मात्र औपचारिकता निभाते हैं? क्यों नहीं इस विशिष्ट दिन पर “हिन्दी भाषा” में कार्यक्रम संचालन करें और अपने बच्चों व युवाओं के लिये  प्रेरणास्त्रोत बनें. जब ऐसा प्रयास हर घर से घरवालों द्वारा होगा तभी सकारात्मकता आयेगी और सुखद परिणाम भी होंगे.


इसके लिये आवश्यक है हमें और उन सभी को समय से पूर्व सारे कार्यक्रम की रूपरेखा और गीत-विचार-उद्बोधन इत्यादि सब अपनी “हिन्दी भाषा ” में तैयार करें और फिर उस विशेष दिवस पर प्रस्तुतिकरण करें. इसके पहले यानी 40-50 वर्षों पहले ऐसा दृश्य नहीं होता था. उन दिनों में प्रायः स्कूल-काॅलेज में या किसी खास विषय पर अथवा विशिष्ट कार्य हेतु अंग्रेजी का प्रयोग होता था. आज तो घर-घर बच्चा-बच्चा अंग्रेजी में ही बात करता है. क्योंकि अब हिन्दी माध्यम वाले स्कूल में बहुत कम लोग अपने बच्चों को पढ़ाते हैं.


अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में हिन्दी को छोड़कर सारे विषय अंग्रेजी में पढ़ाए जाते हैं. तो स्वाभाविक है जो भाषा अधिक प्रयोग में आयेगी वही बोली जायेगी. उसी का प्रभाव सर्वत्र नजर आयेगा. यद्यपि हिन्दी भाषा का लगातार प्रचार-प्रसार सर्वत्र द्रष्टव्य है. विश्व के कई देशों तक हिन्दी भाषा से लोग परिचित हुए हैं और दिनोंदिन होते जा रहे हैं. अमेरिका जैसे बड़े देश से लेकर बाली जैसे अनेक छोटे बड़े देशों में हिन्दी स्कूलों और यूनिवर्सिटीज में पढ़ायी जाने लगी है और लोगों का रुझान भी बढ़ा है.


अर्थात हिन्दी भाषा उन्नति के शिखर की ओर मुखरित हो चुकी है बस. मंजिल करीब समझिये और वह तब जब हमारे घर का बच्चा-बच्चा अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी को अपनायेगा. उससे प्रेम करेगा तभी सम्मान दे सकेगा. इसलिये इस ओर ध्यान देना अति आवश्यक है. साथ ही यह बात निःसन्देह सम्भव बन सकती है यदि अविलम्ब हर घर से हिन्दी की अर्थात अपने हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हिन्दी का पूरे भारत में हिन्दी में जयघोष हो।


अतः हम सभी अपनी हिन्दी भाषा जो हमारी राष्ट्रभाषा है, उसके प्रति सम्मान और प्रेम भाव बनाएं. इस प्रकार हम पुनः कह सकते हैं कि इन महत्वपूर्ण अथक प्रयासों से निश्चित ही हिन्दी भाषा के उन्नयन के सफल परिणाम प्राप्त होंगे और हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी-दिन में सूर्य और रात्रि में चंद्र सी चमकेगी.

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