KALAM KA KAMAL
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‘अति सर्वत्र वर्जयते‘ देखा जाय तो यह सूत्र हरदम उचित साबित होता है। चाहे व्यक्तिगत हो ,सामाजिक हो अथवा प्राकृतिक परिपेक्ष्य हो ।
आजकल कई क्षेत्र बाढ़ के प्रकोप से ग्रसित हैं … सचमुच दृश्य देखकर जी दहल जाता है ।
उनके दुःख दर्द को क्या हम शब्दों में बयां कर पाएंगे … ? शायद .. नहीं… .कदापि … नहीं ….
*
कोई उनसे पूछे ?
कैसे बिखरा ?
आशियां उनका
मिलकर ,
सजाया था
तिनका तिनका
बिनकर .
*
हाय !
अब क्या संवर पायेगा ?
साधन सामान ,
शायद फिर भी ,
पर क्या ?
जो बिछड़े फिर मिल सकेंगे ?
काश !
*
हे प्रभु !
किस कसूर की मिली सजा ?
वे थे बेक़सूर ..
कसूरवार और कोई
लगता है उनका शायद सगा
करना उनको क्षमा
बंदे हैं तेरे, करना दया
हे मालिक !
——
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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