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आगामी.. “गौरैया दिवस ” पर..

KALAM KA KAMAL
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आगामी.. “गौरैया दिवस ” पर..

जागरण जंक्शन  के सभी आदरणीय एवम प्रिय साथियों …मित्रों सभी को मेरा यथोचित अभिवादन !

“ आप सबके समक्ष जिस विषय लेकर विस्तृत चर्चा करने जा रही हूँ, वह हम सभी को पुन: एक बार अपने बचपन की ओर जरूर ले जायेगा , और अपने उन प्यारे दिनों की याद करना किसको नहीं भाता …? अर्थात सभी को बहुत अच्छा लगता है . तो बस उन चंचल…नटखट…शैतानियों …दौड़- भाग ..खेल-कूद और..और भी बहुत कुछ .. याद करने ..के लिये तैयार हो जाइये …

साथियों आगामी 20’th मार्च को “गौरैया दिवस” है . गौरैया का हमारे साथ बचपन से जो रिश्ता जुड़ा वो बहुत प्यारा.. निराला और आजतक बना हुआ है और शायद हमेशा ही बना रहेगा .

गौरैया

“बचपन से गौरैया ने हमको बहुत लुभाया . अपने पीछे बहुत दौड़ाया ..

दाना – पानी खूब पिलाया ….प्यारी गौरैया दुलारी गौरैया

हाँ आधुनिक चकाचौंध और दूषित पर्यावरण से घबरा कर “ गौरैया चिरैया ‘ शायद अब कहीं दूर जा बसी है …जो हमारी बस्ती से  दूर… बहुत दूर …है.

इसके अनेक कारण हैं और सबसे सोचनीय बात यह कि – हम सब इसके लिये जिम्मेदार हैं . आइये देखें वो कौन कौन से कारण हैं ..?

1-  वातावरण के प्रति हमारी उदासीनता अथवा लापरवाही …

2-  अत्यधिक ऊंचे भवन और इमारतें बनना और लगातार बनते जाना ..

3-  हरे भरे वृक्षों का दिन प्रति दिन कटना

“गौरैया’” बेचारी कहाँ घोसला बनायें …?

4-  अनेक औद्योगिक संस्थानों दिन रात वायुमंडल में प्रदूषण फैलाना . जिसके शोर और दूषित वातावरण में उसका जीना दूभर हो गया है।

इसके अतिरिक्त घर – घर में वातानुकूलित संसाधन होने से घरों की खिड़कियों का बंद रहना .’ बेचारी गैरैया घर के अंदर आये तो कैसे आये फुर्र –फुर्र उड़े तो कैसे ..? चीं चीं करे तो कैसे … …?

6-   अधिकांशत: घरों में आजकल पैकेट बंद अन्य सामग्री के साथ गेंहूँ…दाल..चावल..आते हैं . अर्थात अब घरों में अनाज वगैरह धूप में नहीं धोये फैलाये जाते हैं इसलिये अब ‘गौरैया’ दाना चुगने के बहाने आती सो वो भी …नहीं….आ पाती है।     कहने का तात्पर्य ऐसे अनेकनेक कारण जिनकी वजह से हम प्यारी नन्हीं गौरैया से या वो हमसे दूर होती ही जा रही है ; जो किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं …

गौरैया जो फुदक – फुदक कर हमारा मन प्रफुल्लित करती रहती थी , पर अब नहीं करती . आज हम लोग इतने खुश और सुकून भरे क्यों नहीं दिखायी देते ; जितने कि पहले हुआ करते थे …क्योंकि हमारे मन को हर्षाने वाली गौरैया न जाने कहाँ चली गयी ….

अब हमारे जीवन में क्या अंतर आया …है आइये देखें …


आज हम अलार्म घड़ी की तीखी ध्वनि से जगते हैं , गौरैया की चहचहाने से नहीं .

बच्चों का बचपन खोता जा रहा है ; वो क्या जाने कौन है ‘गौरैया’ ? क्योंकि अब वो फुर्र फुर्र उड़ती गौरैया को न देखते हैं ; न उसके पीछे दौड़ते हैं . पहले बच्चे उसको दाना ..चावल इत्यादि चुगाते थे …पानी पिलाते थे ;तो उनके दिलोदिमाग में दया करुणा जाग्रत होती थी पर आज बच्चों के अंदर वो सब नहीं …

आज छोटे छोटे से बच्चे क्रोध और गुस्से में आपे से बाहर होते घरों में देखे जाते हैं . कारण प्रकृति से दूर घरों में अधिक बंद रहते हैं .

अब वो कम उम्र में ही बड़े हो जाने लगे हैं .उसकी वजह यह है कि-

बच्चे अब घरों के अंदर रह कर टी.वी. में प्रोग्राम देखते हैं ( जिनमें से कई प्रोग्राम्स तो उनकी उम्र से बड़ों के होते हैं )

इतना ही नहीं  कम्प्यूटर में , मोबाइल में गेम खेलते हैं उसके शोर ( साउण्ड प्रदूषण ) से पीड़ित होते हैं जल्दी ही उंको चश्मा लग जाता है क्योंकि लगातार उसे देखते रहते हैं. कहीं न कहीं दिमाग में भी असर करता है जो फायदेमंद कम हानिकारक अधिक .

सारा दोष जाने अनजाने हम सभी से हुआ है . सारा पर्यावरण दूषित हो गया . हरियाली गायब हो गयी और प्यारी प्यारी नन्हीं गौरैया फुर्र हो गयी न जाने कहाँ …?

जिसकी कमी चारोंओर दिखायी पड़ रही है . अब न प्रकृति में वो चंचलता ..चहचाहट रही है न वो सुगंधित वायु के झोंके .

”यद्यपि आज पूरा विश्व इस ओर प्रयासरत है कि – ‘गौरैया’‘ को पुन: बसाया जाय . वह अपनी उसी चंचलता के साथ फुदकना शुरू कर दे और अपने ढेरों झुंड के साथ खुश हो चारों ओर मीठी चहचहाहट फिर से भर दे ..”

*

अत: हम सभी को मिलकर एक जुट होकर प्रयत्न करना होगा सारा वातावरण शुद्ध करना होगा जिससे गौरैया पुन: वापस आये और हर अँगना – उपवन डाली डाली फिर अपने झुण्ड (कुटुम्ब) सहित फुर्र – फुर्र उड़े और सारा जहाँ गुल्जार कर दे .जिससे फिर से एक आनंद की लहर दौड़ जाय …और बच्चे बूढे व युवा सभी प्रफुल्लित हो जायें; जो अत्यावश्यक है .

कुछ पंक्तियाँ …

“कभी गौरैया की चीं-चीं से, नित  सबकी सुबह  होती  थी

मीठी चहचहाहट से सबके,   जीवन में खुशियाँ भरती थी

फुदक – फुदक कर डाली डाली इधर – उधर मंडराती थी

इतना शोर मचाती मिलके ,जबरन सब बच्चों को जगाती

अपना समझ कर हर दिन, घर अँगना में, फुर्र – फुर्र करती

बड़ी फुर्तीली स्वच्छता वाली , छप – छप   खूब  नहाती भी

चोंच में दान ले उड़ जाना , फिर जा अपने बच्चों को चुगाना

घर बनाना बच्चे पालना , ‘उनको’ जीवन –  जीना  सिखाना

सब गुणों में होशियार गौरैया , नन्हीं सी समझदार  चिरैया

कर्मठता का पाठ पढ़ाती , हमको भी हर  लक्ष्य  समझाती

प्यारी गौरैया वापस आ जाओ,  हम सब तुम्हें  बुलाते  हैं

अपने कुनबे संग  बस जाओ , हम सब  तुम्हें  मनाते  हैं

तुम्हारा हम सब ख़याल  रखेंगे , कभी  न  तुमको उदास  करेंगे

भूल हुई थी अनजाने में ,  गौरैया रानी  क्षमा  करो  हमें

नोट:- ( यदि लिखने में कहीं कोई त्रुटि हो, कृपया क्षमा कर दें.)

धन्यवाद !

मीनाक्षी श्रीवास्तव

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