KALAM KA KAMAL
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दुनिया के मेले में
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हम क्यों हुए अकेले से
दुनिया के इस मेले में
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भेद जो किये थे अपने-पराये
तभी बने हैं पराये से अपने
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पढ़के पुस्तकें ग्रंथ ऋचायें
तनिक भी एक समझ न पायें
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गर अपना सबको समझते
बनते कभी न अपने पराये
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जीवन कितना मधुर हो जाता
हर रिश्ता सुंदर बन जाता
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परमपिता के घर में रहके
फिर भी बैर आपस में करते
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‘प्रभु’ को भी यह रास न आता
तभी उसे समझाना पड़ता है
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रहते सदा अनभिज्ञ करमों से
दोष भाग्य या औरों पर मढ़ते हैं
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करें किसी से न शिकवा गिला
मिलजुल कर सब रहें सदा
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‘ मालिक ‘ की रहमतें बनी रहे
जीवन में रौनकें सजी रहे .
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मीनाक्षी श्रीवास्तव
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