“मातृ दिवस ” / मदर्स डे
“माँ “
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सर्व प्रथम jagranjuction में सभी माँ को एवं निकट भविष्य में होने वाली माँ को इस शुभ दिन ” मदर्स डे ” की हार्दिक बधाई !
सचमुच में माँ का तो हर दिन खास है . हर दिन महत्व्पूर्ण है. पर युँ ही एक चलन अनुसार कुछ लिखना है …तो कहूंगी कि – “माँ ” के बारे से ऐसा शायद ही कोई होगा जो इससे अनभिज्ञ हो ! सभी मां की ममता , वात्सल्यता त्याग बलिदान और अपनत्व को भली भांति जानते हैं समझते है. माँ की महिमा की कौन व्याख्या कर सकता है ; अर्थात कोई नहीं। मां का व्यक्तित्व इस जगत में साक्षात अलौकिक सदृश्य है , मेरा मानना है.
वेदों – पुराणों एवं अनेक धर्म ग्रंथों में मां की महिमा का वर्णन मिलता है। और उस समय वास्तव में मां को जो आदर – सम्मान मिलता था , आज उसका एक भी प्रतिशत नज़र नहीं आता।
जबकि अल्प मात्र या अपवाद स्वरूप ही कोई मां अपनी भूमिका में खरी नही उतरती होगी ।
वर्तमान लगभग ७० प्रतिशत माताएं दिन रात कठोर श्रम कर चाहे वो किसी भी क्षेत्र में हों , अपने बच्चों को सुखी करने के लिए उसका भविष्य संवारने में जुटी रहती है। अपने बच्चों के सभी सुख संसाधनों को उपलब्ध करने की कोशिश करती है यही नहीं बच्चो के तरह तरह के फरमाइशी व्यंजन भी बनाती है ; फिर चाहे इसके लिए वो रेसिपी कहीं से प्राप्त कर बनाये ; पर आज भी उसको अपने बच्चों की मुस्कान ही भाती है। कहने का तात्पर्य मां और ममता दोनों का कोई जोड़ नहीं ।
पर यही उसकी संताने जैसे जैसे वो शक्तिहीन होती जाती है या बीमार रहने लगती है तो पहले रोष और फिर धीरे धीरे उससे किनारा करने लगते हैं। यदि किनारा किसी कारण वश नही कर पाये एक घर में रहे तो अपनी मां साथ दुर्व्यवहार करने से बाज़ नही आते । कहना गलत नहीं होगा ..साफ नज़र आता है कि वे उनके आखिरी दिन के इंतज़ार में रहते हैंं . जहां एक ओर उसे अपने बुढ़ापे में सहानुभूति ,स्नेह और सम्मान की उम्मींद रहती हैं वही अपनी संतानों से ये अपमान जनक व्यवहार उसका एक – एक दिन जीना दुष्कर कर देता है. जीना वो भी नहीं चाहती पर कहते हैं ना जब सांसे होती हैं इंसान को जीना ही पड़ता है . ऐसी पीड़ा जनक हालत में भी वो कभी अपनी संतानों को सदा दुआएं ही देती रहती है ; ना जाने किस मिट्टी की बनी होती है .
अनेक ऐसे किस्से आये दिन दूरदर्शन व समाचार पत्रों में पढने मिलते हैं। अब तो टेलीविज़न में अनेक सच्ची घटनाओं पर आधारित सीरियल ही शुरू हो गए हैं। जिन्हे देख कर लगता है मदर्स डे नाम पर मात्र दिखावा है। सत्यता कुछ और ही है.
एक कटु सच – ” वही प्यारी माँ जब शक्ति से भरपूर होतीं हैं तो बच्चों को उसके बिना कुछ नहीं भाता . उसकी गोद में उसके आँचल में उसे सारा जहां दिखायी देता है .अपनी माँ से बढ़कर उन्हे कुछ नही भाता किंतु बाद में ….वही माँ बोझ स्वरूप लगती है .” केसी विडम्बना है !
वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहना गलत न होगा – आज बहुत कम ऐसी भाग्यशाली माताएँ होंगी जिंनके बच्चे उन्हें यथोचित सम्मान और स्नेह देते होंगे .
वे बच्चे भी बहुत नेक इंसान होंगे जो अपनी माँ को सादर सम्मान -पूर्वक रखते हैं .
हमारी ओर से वे सभी आशीर्वाद के पात्र हैं .
समाज के इन्हीं कई पहलुओं को उजागर करतें हुए कुछ “ हाइकु “
ममता मूर्ति
वत्सल्यता से भरी
प्यारी मइया .
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माँ की ममता
त्याग बलिदान
जग विख्यात .
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माँ का सानिध्य
संतान हितकारी
जग चर्चित
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जननी के जाये
जननी को भुलाये
लाज़ न आये .
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माँ की महिमा
सुंदर परिभाषा
नित्य वंदित .
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माँ की चाहत
देव बने बालक
पालना झूलें .
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माँ का सानिध्य
जगत में तीरथ
करें मातृ वंदन .
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पुन: शुभकामनाओं के साथ ….
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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