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चित्र एक …और भावनाओं के रंग अनेक !
मन में लिये प्रश्न अनेक ,
बैठ गई वो लेके टेक ,
जूते – मोजे स्कूली – ड्रेस ,
नहीं बदले थे, आज भी एक.
मन ही मन कुछ सोच रही थी
चांद – तारों को देख रही थी ,
जैसे – कुछ पूछ रही थी .
मानो किसी को खोज रही थी .
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प्राय: देखा जाता है कि बेटा माँ का दुलारा….और बेटियां हमेशा पिता की लाड़ली होती हैं. दोनों (बेटा – बेटी ) के छोटे – मोटे झगड़ों में अकसर देखा जाता है कि मां बोलती है – यदि बेटा छोटा हुआ तो बोलेंगी अरे…तुमसे छोटा है भाई …यदि बड़ा हुआ तो भाई तुमसे बड़ा है….कहने का तात्पर्य …समझ लीजिये . और बेटियाँ भी पापा चाहे आफिस से देर रात लौटें पर उनसे दिन भर की बातें / शिकायतें किये बगैर सो नहीं सकती .. कुछ इसी प्रकार से…
र्रूठ के बैठी थी जा छत पे –
झगड़ा भैया से हुआ था
भैया ने फिर खींचे थे बाल –
मम्मी ने भी उसी को टोका था .
भैया है मम्मी का दुलारा ,
पर वो तो है, पापा की बेटी ,
सारी शिकायत पापा से करेगी ,
बात नहीं वो किसी से करेगी .
इसी लिये बैठी थी अकेली ,
राह पापा की देख रही थी ,
शाम से रात हो रही थी .
मानो कहीं वो खो गयी थी .
चांद – सितारे निकल पड़े थे .
देख के उसको मुस्करा रहे थे
चमक – चमक के मना रहे थे
जरा सा हँस दो ऐ प्यारी गुड़िया !
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(नोट : यह प्यारा चित्र नेट से उपलब्ध हुआ है .)
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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