“Contest” प्रणयोत्सव पर्व
आयो बसंत…मन में छायो उमंग….
वास्तव में बसंत ऋतु के आगमन से सम्पूर्ण प्रकृति- धरती…अम्बर…वायु..जल.. जड़ – चेतन – स्त्री – पुरुष सभी के अंदर नव संचार अर्थात नया जोश-उमंग-हर्ष अनायास ही दिखायी देने लगता है .
देख कर ऐसा नज़ारा महसूस होता है, मधुमास में सभी तरुणायी अवस्था में आ जाते हैं .
धरती तरह -2 के रंगीन फल-फूलों से आच्छादित हो जाती है तो आकाश केसरिया रंग की छटा बिखेरता नज़र आता है जो लोगों के तन मन को हर्षोल्लासित करता रहता है .( सर्दी के बाद सुनहरी धूप बड़ी सुखदायी प्रतीत होती है ) . हवा भी मनमोहक सुगंध से भरपूर हो सुहानी बहने लगती है . बादल तरह – तरह की आकृति ले छितर -2 जाते हैं . सभी के मन में जाने-अंजाने प्रेम अंकुरित होने लगता है .
इस ऋतु का असर कुछ ऐसा..कि …कहीं कोई बीती सुहानी यादों में खोया-खोया रहता … तो किन्हीं को ही नव प्रेम रस में सराबोर होने को बेताब करती रहती हैं, ये– बसंती ऋतु ! पशु अपने हाव-भाव से तो.. पक्षी मधुर कलरव गान कर नई उड़ाने भरने लगते है. कहने का अर्थ है कि बस …चारों ओर एक मदहोश …कर देने वाला जादुई आकर्षण सा छाया दिखता है और कुछ इसी तरह..से निम्न पंक्तियाँ बयां कर रही हैं……
मनवा पतंग बने –
डोर थामे न थमे –
जाने क्युं जिया हुलसे ?
तन – मन तरंग फैले-
नैना सप्तरंग भरे –
सपने अनेक देखे,
लट झुमके से उलझे –
गुलाल कपोल होते –
सरसराहट तरुवों से –
रह-रह वो चौंक पड़ती .
दिल की धड़कनों पे –
जोर कोई न चले ,
मद् मस्त झोंकों से-
साँसे महक़ने लगीं –
सुर्ख हुए होठों पे –
प्यार भरा गीत आये –
कदमों की चाल बने –
नाचे मयूरी जैसे .
…..
कौतुक – वश –
बाहर आ के –
द्वार खोल जो –
उसने देखा –
शर्माती कलियों पे-
गुंजार – करते –
भौंरों को देखा ,
तितलियां फूलों को
छू पंख फैला –
इठलाती देखा .
डालियाँ लहराके झूमे-
अमुवा बौराया देखा ,
लहराती सरसों पे-
‘गोरियों को –
खिलखिलाती देखा,
काली कोयलिया को-
कूकती मतवाली देखा.
सौरभ – रंजित –
बसंत – बहार –
को छाया देखा –
बांधा था ऐसा समा –
मुड़ के जो उसने देखा –
मुस्काता * मधुमास * खड़ा !
देखते ‘बसंत’* को वो –
दहक गई लाज से –
जान गई भेद सारे –
क्युं तन – मन –
बसंती हुआ !
स्वीकारा उसने –
निवेदन जो प्यार भरा –
जीवन भर मधुमास का-
प्रणयोत्सव मनाया !
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नोट : सभी सुंदर चित्र के लिये नेट का साभार है .
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मीनाक्षी श्रीवास्तव
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