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मां तू कितनी भोली है !

KALAM KA KAMAL
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मां की भूमिका

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मां की भूमिका कितनी कठिन होती है , एक मां ही समझ सकती है । नए मेहमान ( शिशू ) का चौबीसों घंटे  उसके ढेरों काम और बाकी घर के भी सारे काम । घर के काम वह तभी कर पाती है जब वह सो रहा हो , या घर में कोई उसको सम्भाल रहा हो , पर अक्सर देखा जाता है – और मनोवैज्ञानिक तौर पर भी यह बात सिद्ध हुई है , कि शिशू को हर समय ‘अपनी मां’ अपने करीब चाहिये होती है, बस और एक सरल सी युक्ति- जिससे उसकी मां तुरंत सुनती है वह है उसका – रोना . सचमुच कोई मां कभी भी अपने बच्चे को रोता हुआ नहीं देख सकती है ; शायद ये उसकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है ।

पर शैशव काल से लेकर बच्चे कैसे –कैसे अपनी मां की ममता से खेलते हैं …कितनी उनकी परवाह करते हैं – यह जग ज़ाहिर है किसी से छिपी नहीं …..

में ऐसी सुविधा ना होने से कितनी बार मां बच्चों के द्वारा गीले किये बिस्तर में खुद लेट अपने “लाल “ या “लली” को सूखे में लिटाती थीं ? उस समय बहुत कष्ट उठा कर मां बच्चों को न केवल जन्म देती थी ;बल्कि बाद में भी अन्य अनेक संसाधन ना होने के कारण बहुत कुछ सह कर पर अपने बच्चों को खुशी -2 पालती थी .

किंतु देखते ही देखते ज़माना ना जाने कितना बदल चुका है और बदलता ही जा रहा है.

आज अपने बच्चों की देखभाल के लिये मध्यवर्गीय घरों में भी लोग आया रख लेती हैं या  कुछ “बेबी केयर सेंटर” में डाल देती हैं –(जैसा कि पहले बहुत सम्पन्न लोग किया करते थे ) इस प्रकार आजकल अधिकांशत: माताएं /मम्मियां बहुत सी बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त हैं और वे या तो कही ना कहीं नौकरी करती हैं या अपना खुद का कोई भी काम । यह बात कहाँ तक उचित है ; कहाँ तक नहीं –..? यह समाज में हर व्यक्ति का अपना -2 नज़रिया होता है ..और यह वही ..समझ सकता है ….. .

परन्तु यहाँ पर  . .आज से मैंने वर्षों पहले एक साधारण परिवार में एक मां की और उसके लालन (नन्हें शिशु ) की स्थिति का चित्रण किया है :

एक मां जो अभी –अभी जब शिशु को पालने पे सुला कर  . . . कि अब वो एक – दो घंटे सो लेगा तो वह  – दूसरा काम ( उसको तो शिशू के अलावा घर के भी अन्य सारे काम करने होते हैं ) शुरू ही किया था कि- शिशू के रोने की  आवाज सुनती है ……….

“शिशु की चतुराई”
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क्षण भर में नींद से जगे ललना ने –

पलना से  चारों  ओर जो – देखा ,

समीप मां न पा, वो बड़ी जोर से रोया ।

सब छोड़  के काम – काज वहीं  पर ,

‘वो’  झट से लपकी ललन को लेने ,

ज्यों  दौड़ के  मां को आती  देखा ,

त्यों शिशु ने अधरों पे मुस्कान बिखेरा  ,

फिर नन्हीं बहियां ऊपर को पसारीं ।

गोद उठा, शिशु अंक में भर, मां ने ली ,

एक गहरी सांस, जैसे उसने कोई भूल की ,

ऐसी शिशु ने देखी अपनी मां  की सूरत ।

आंचल  में   छिप वो  सोच रहा –

“मां”  तू   कितनी  भोली  है !

‘तुमको’ अपने पास बुलाने का,

ये  मेरा  अंदाज़  निराला   है  !

मीनाक्षी श्रीवस्तव

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