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सचमुच प्रकृति की हर वस्तु हर द्रश्य हर कोई अपने अनुपम आकर्षण से हमें नित्य आकर्षित करता रहता है . धरा, आकाश , सूरज-चांद–सितारे, बादल , मलय-बयार, पर्वत-झरने, नदिया, सागर, घाटियां, चमकीली रेत ,पानी, पेड़, पौधे,फल-फूल, खग-मृग, सुबह- शाम, दिन-रात , मौसम ,बच्चे- बड़े, स्त्री – पुरुष इत्यादि-इत्यादि । अर्थात उस अलौकिक परमात्मा ने इतनी सुंदर दुनिया बनायी है कि ऐसा कुछ भी नहीं शायद जो हमें आकृष्ट ना कर सके .
शरद पूर्णिमा की अनेक यादें बचपन से लेकर बड़े तक की मेरे मानस –पटल में अंकित हैं.उनमें से यहाँ पर आज मैं अपने बचपन की एक स्मृति को साझा करना चाहूंगी –
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इस शरद पूर्णिमा के दिन माँ चावल की बहुत सारी खीर बनाती ( वैसे अक्सर अनेक प्रकार की खीर बनाती थी ) और बड़े से बरतन में करके, आंगन में एक छोटी सी मेज के ऊपर रख बड़ी सी चलनी से ढकती और रातभर उसको यूं ही आंगन में रहने देती थी। वह कहती कि आज रात आकाश से भगवान जी अमृत की वर्षा करते हैं इसी लिये खीर आंगन में खुले में रात भ्रर रखी जाती थी . सुबह घर के बड़े लोग तो नित्य –कर्म करके , पूजा ध्यान करने के बाद सबसे पहले खीर का प्रसाद लेते बाद में कुछ और……
पर हम तीनो छोटे भाई –बहन बस मंजन करते और खीर मांगने लगते थे ..मां मुस्कराते हुए अच्छा …अच्छा देती हूँ और हम सभी को वो सुंदर से ‘फूल के कटोरे’( उस समय फूल, गिलट ,ताम्बे इत्यादि के बरतन घरों में प्रयोग होते थे ) में अलग-2 देती खीर इतनी होती कि दिन में कई बार खाते पेट तो भर जाता पर जी नहीं भरता था वास्तव में शरद पूर्णिमा की रात की खीर का स्वाद अनोखा होता था .
एक बार तो मैं कौतुहलवश काफी रात तक आकाश निहारती रही कि देख सकूं भगवान जी को अमृत की वर्षा करते हुए ..पर पता नहीं कब आंख लग गयी ….सुबह मां ने जगाया मुस्का के तो मुझको अपनी नींद पर बहुत गुस्सा आया , पर मां बच्चों को कैसे -2 प्यार से बाते बना-बना कर बहला लेती है , मां बनने के बाद स्वयं मैंने भी जाना है .
एक बात माँ कहती थीं कि- ऐसी किवदंती है कि इस रात चांद के सामने सुई रख यदि धागा डाला जाय तो आंखों की रौशनी बढ़ती है माँ खुद और हम सभी से ऐसा करवातीं थीं परंतु शादी के बाद …..जैसा कि.. हर लड़की को सारी रीति-रिवाज ससुराल के हिसाब से करने होते हैं और चाहिये भी तो वो सभी बातें एक सुनहरी यादों की तस्वीर बन चुकी है . पर एक बात बता दूं कि मेरी माँ लगभग पच्चासी वर्ष की आयु की होंगी , और अभी भी वो स्वेटर बुन लेती हैं कढ़ाई कर लेती हैं और पढ़- लिख लेती हैं उनकी आंखें प्रभु की कृपा से ठीक हैं. अब ये शरद पूर्णिमा के चांद के समक्ष सुई में धागा डालने से हैं या कुछ और…पता नहीं….. लेकिन ये बात तो है कि इस रात्रि का चांद सबसे सुंदर दिखता है . वैसे हर पूर्णिमा का चांद सुंदर माना जाता है पर शरद पूनम का चांद अपने में चार चांद लगाये दिखता है . और ऐसा वर्णन भी मिलता है कि इस रात के चाँद और उसकी चंद्र-किरणों से मानों अमृत रस की वर्षा होती है , यानी इस दिन की चांदनी इस धरती और इस पर रहने वालों के लिये इतनी लाभकारी होती है . तो इस प्रकार काफी दिनों बाद “अम्रत वर्षा” का रहस्य जान पायी थी, मैं ।
इस दिन एक अजब “ हन्ना “ खेल होता था । हमारे घरों से कुछ दूरी पर कुछ मुराई ,ठठेर , या कुछ रिक्शे वाले व तांगे वाले रहते थे उनके बच्चे ये खेल करते थे इसमें वे लोग किसी एक लड़के को पत्तियों से ढक कर पैर में घुंघरू और घंटी पहना कर “ हन्ना “ बना देते थे .शाम लगभग सात बजे से सब लडके झुंड बना कर शोर मचाते हुए हर घर में जाते और “ हन्ना “ से नाच करवाते और कुछ . . .कुछ बोल बोलते थे ..”.हन्ना गुर बाउर बाउर हन्ना मांगे तिल्ली चाउर ..हन्ना भूखा है ….. “ छम- छम की आवाज और सभी झुंड का कोलाहल हम सभी बच्चों को अच्छा लगता था . हर घर से लोग उसे अन्न – मिठाई और पैसे देते और उसको पानी भी पिलाते थे । सभी “हन्ना” का नाच देखते । सबसे अंतिम घर में उसका चेहरा दिखाया जाता था . पूरा ढका होने के कारण कोई भी उसको पहचान नहीं सकता था । हन्ना सभी घर पर को अच्छा – भला बोलता जाता था .दूसरे शब्दों में बोलूं तो सभी को दुवाएं देता जाता था . तो इस प्रकार उस समय “ शरद पूर्णिमा “ का उत्सव मनाया जाता था .
मेरी ओर से सभी को “ शरद पूर्णिमा “ की हार्दिक बधाई !
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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