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वे दो.. ‘शब्द-शहद’ रस उनके…

KALAM KA KAMAL
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वे दो ‘शब्द-शहद’ से…

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आंखे चार हुई, जब उनसे,
सुर्ख गुलाब हुई मैं, शर्म से.

वे दो ‘शब्द-शहद’ रस उनके,
मेरे जीवन की शहनाई बने .

सुरभित हुआ जीवन अपना
नित नया – मधुमास बना .

खिलते उपवन को हमने ,
बड़े नेह से सींचा मिलके .

बसंत-बहार, सावन-भादों ,
हम-दोनों ने मिलकर बांटे.

अजब निराला जग में प्यारा,
कुदरत ने ये रिश्ता बनाया ! .

उस ‘मालिक’ से है, ये दुवा ,
विनती सुन लो ऐ मेरे खुदा !

बना रहे ये नेह का साया ,
जब तक मुझमें हो, जीवन धारा !

मीनाक्षी श्रीवास्तव

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