हिन्दी वर्णमाला की सुन्दर मनका , मन चाही माला पिरो लो ….
कुछ दिन पहले पढ़ा था – ‘हिंदी दिवस’ पर सुप्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार जी ने “हिंदी” वर्ण माला पर नया प्रयोग किया है और उस पर एक किताब लिखी है । मैंने पढ़ा और स्वयं भी ऐसा छोटा सा – प्रयास करना चाहा – जो निम्न्लिखित हैं कृपया आप भी अवलोकन करें –
अ – अंजाने ही किसी अजनबी ने दिल में हौले से दस्तक़ दे दी ।
आ – आपके ख्याल में ऐसे डूबे …दिन कब ढल गया –पता ही नहीं चला ।
इ – इस राह पर आगे चलकर तुमको एक बहुत पुराना “ शिव मंदिर” मिलेगा ।
ई – ईमानदारी से बढ़कर दुनिया में कोई चीज नहीं ।
उ – उनको भूल जाऊं ये कैसे सम्भव है !
ऊ – ‘ऊपरवाले’ के घर देर है पर अंधेर नहीं ।
ए – एक नेक इंसान बहुत लोगों का पथप्रदर्शक बन सकता है ।
ऐ – ऐ रूठने वाले कब तक रूठे रहोगे …. मुझको मनाना भी आता है ।
ओ – ओढ़ कर धानी चुनरिया , शरमा गयी वो बांकी गुजरिया ।
औ – औरत को ईश्वर ने बहुत सुंदर और सहनशील बनाया है ।
अं – अंको की कहानी बहुत बड़ी है ।
अ: – अ: क्या बात बतायी- तुमने, आनंद आ गया !
ऋ – ऋतु बसंत सभी ऋतुओं में सबसे सुंदर मानी जाती है ।
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तो इस प्रकार मैंने भी “हिन्दी वर्णमाला “ पर एक नया रंग डालने छोटा सा प्रयास किया है – जिसमे कुछ ऐसे भाव है , ऎसी बात बतायी है – जो आप सभी लोगों को शायद पसंद आयेगी – ऎसी इक उम्मींद की किरण के साथ ………
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