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यहाँ पर मैं यह कहना चाहूंगी कि आज लोग हर क्षेत्र में बहुत जागरूक हो गये हैं । वे अनेक विषयों के जानकार हैं । देश विदेश की जानकारी रखतें है ; तो अनेक भाषाओं को भी बोलना जानते हैं ।
सबसे बड़ी बात तो यह लगती है कि हर बात लोगों को अन्य देशों की भाती है बस ‘हिंदी’ को लेकर क्यों इतनी परेशानी होती है ?
कुछ भी विदेशी खायें, विदेशी वस्त्र पहने, विदेशी वस्तुओं का स्तेमाल करें सब बढ़िया , श्रेष्ठ समझा जाता है ; बस हिंदी पर आकर बात क्यों अटक जाती है ?
क्यों उसमें समय का परिवर्तन सहन नहीं होता ?
यद्यपि वर्तमान में हिंदी बुलंदियों की ओर पर है , पर दुनिया वालों का क्या !
हाँ “हिंदी” समय के परिवर्तन के कारण कुछ नये रूप में दिखती है ; उसमें से क्लिष्टता घटती जा रही है सरलता आती जा रही है . जो कुछ इस प्रकार दिखायी देती है :
कि आज अनपढ़ समझे जाने वाले व्यक्ति वो भी हिन्दी की जगह अंग्रेजी भाषा के शब्द प्रयोग करतें हैं जैसे – फोन, मोबाइल, पाइप , बिल , लाइट , सॉरी, न्यूज़ पेपर , हेलो, थैंक-यू , और बाय-बाय ये सब इतने बहुतायत में बोले जाने वाले अंग्रेजी के शब्द हैं. कहने को ये अनपढ़ जैसे तो हैं फिर भी …
और दूसरी और पढ़े लिखे भी हिन्दी के जानकार लोग भी – फोन की जगह दूरभाष शब्द स्तेमाल नहीं करते हैं; क्यों ?
आश्चर्य की कोई बात नहीं कि – बहुत से लोगों को दैनिक स्तेमाल की जाने वाली अनेक वस्तुओं को हिंदी में क्या कहते हैं नहीं बोध होता और अंग्रेजी में बोलते हैं। अर्थात “अंग्रेजी अब हमारी हिंदी में कहीं न कहीं रच- बस गयी हैं; परन्तु इसका कदापि यह अर्थ नहीं कि आज इसमें कोई गुलामी की बू आती है। “
एक बात और …
“यदि कुछ भारतीय संस्कृति का अंग्रेजियत पर प्रभाव पड़ा है तो कहीं न कहीं निश्चित रूप से हम पर भी पड़ा है। हाँ, इसको नकारात्मक द्रष्टिकोण से देखना उचित नहीं । “
समय का प्रभाव सदा पड़ता है । अर्थात यदि यहाँ पर लोग अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं,लिखने, पढ़ने, बोलने में तो इसके कई कारण है –
1. वर्षों ब्रिटिश / अंग्रेजों के साथ रहने का प्रभाव ।
आज हर कोई जागरूक हो गया है और वह समस्त विश्व में रहने वाले लोगों उनके बारे में ( विश्व बंधुत्व भावना से ) और इसके अलावा अन्य क्षेत्र भी ज्ञान हासिल कर रहा है और करना चाहता है ; और यह तभी सम्भव है कि हम उनकी भाषा समझ सकें .
और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग अधिकांश देशों में होता है |
“जब हम उनकी भाषा समझ सकेंगे तभी हम अपनी “ हिंदी भाषा “ को भी उन तक पहुंचा सकेंगे ।“
कुछ पंक्तियां इस प्रकार —
जब दिन को हिंदुस्तानी बदले
“गुडमार्निंग और गुडनाइट से
बेवजह सी लगती है इनसे
करनी ‘हिंदी’ की फाईट !
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भोजन में चाहे खाना
पिज़्ज़ा बर्गर मंगवाना
प्यास बुझे जल से ना
हाट साफ्ट ड्रिंक्स के अलावा !
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नारी ने बदले हैं -भेष
दिन रात खोल के केश
पहने जींस और टॉप
दिखती हर दम टिप टाप !
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बच्चे भी किट पिट करते
तो इंगलिश में ही करते
खेलते कमप्यूटर “गेम” वे
पढ़ते हैं अब “ टैबलेट” से !
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मस्ती में जब ‘ये’ डूबे
खूब नाचे गायें झूमे
सुर ‘संगीत’ बोर करे
सिर्फ पॉप रॉक रस लाये !
अपनों का संग न भाये !
‘नेट’ यारी में दिल लगाये !
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जब सब बदले “ हिंदवासी ”
नहीं मन में तनिक उदासी
फिर क्यों ना लगाये “हिंदी “
“अंग्रेजियत की बिंदी ?”
आखिर क्यों “हिंदी” से ही
सब आस लागाते भारी ?
अंत में कहना चाहती हूँ कि “हिंदी को विश्व व्यापी बनाना है, इस ओर अधिक से अधिक जागरुकता निरंतर बढानी होगी पर किसी अन्य भाषा से नफरत नहीं करना होगा ,तभी सफलता मिल पायेगी ।“
“(क्योंकि हमें केवल बुरे कर्मों से नफरत करनी चाहिये न लोगों से, न उनकी भाषा से और न उनके धर्म से )”
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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