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“Contest “” हिंदी दिवस पर “पखवारा” – परम्परा

KALAM KA KAMAL
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“Contest “


3. हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला?


मैं इस विषय में अपने विचारों को लिखना चाहूंगी जैसे –

हिन्दी दिवस पर “पखवारा ” के आयोजन का औचित्य बड़ा महत्वपूर्ण है और यह साफ़ नजर आता है- वह इस प्रकार कि –

“हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ का आयोजन तो एक दिन होता है पर पूरे वर्ष भर इसको अनेकों नयी उड़ान देने का प्रयत्न जारी रहता है – इसलिए इस परम्परा का चलन सार्थक साबित होता है । “

एक और महत्वपूर्ण बात –

“यदि किसी परम्परा से हमें लाभ मिलता है; भले कभी कम कभी अधिक,तो उसका चलन बनाये रखना चाहिये । कब उसका प्रतिशत बढ़ जाए कहा नहीं जा सकता – अतः ” परम्परा ” को बनाए रखने के लिए उसका आयोजन करते रहना चाहिए। यही उचित होता है । “

ठीक इसी प्रकार हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन की परम्परा का चलन महत्वपूर्ण है और इसको चलने देना चाहिए।आगे बढाते रहना चाहिए |


भविष्य में बहुत सी आशा की किरणें स्पष्ट हो रहीं हैं।
आज बहुत से सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में हिन्दी में कार्य तेजी से बढ़ रहा है ; बैंक वगैरह में जो व्यक्ति हिन्दी में कार्य – पत्र व्यवहार करता है – उसको बहुत सम्मान-नकद और प्रशस्ति पत्र दोनों से किया जाता है।


व्यापक होती जा रही है। “

आज हिंदी की व्यापकता सर्वत्र दिखायी दे रही है कौन सा ऐसा क्षेत्र हैं जहाँ हिंदी की दस्तक़ नहीं …?
आप चाहे शिक्षा , साहित्य , दूर संचार ,तकनीकी , रसायन भौतिकी, विज्ञापन, समाजिक, प्रशासनिक, चलचित्र जगत लें या स्वास्थ्य, सम्बंधी अयुर्वेद ‘योग’ अनेक ललित कला के क्षेत्र देखें तो हिंदी भाषा की प्रगति साफ दिखायी देती है और शायद इसका श्रेय कहीं ना कहीं इस ” हिंदी दिवस “पखवारा” परम्परा को ही जाता है .

नि:संदेह इस परम्परा के कारण कितने ही सार्थक प्रयास ‘हिंदी’ को व्यापक बनाने एवम दूरगामी सफल बनाने के कार्य निरंतर किये जा रहे हैं !

अंत में- मैं अपने उस वाक्य को पुन: दोहरा कर, स्पष्ट कर , “इस विषय ” को विराम देना चाहूंगी …..

“ हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ का आयोजन तो एक दिन होता है पर पूरे वर्ष भर इसको अनेकों नयी उड़ान देने का प्रयत्न जारी रहता है – इसलिए इस परम्परा का चलन सार्थक साबित होता है । “

मीनाक्षी श्रीवास्तव

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