ओ रे पिया …..
ओ रे पिया*****
” सावन का महीना ” आते ही चारों ओर हरियाली ही हरियाली छा जाती है; यह न केवल वातावरण में अपितु सभी के दिलों-दिमाग में …तन-मन में भी ….दिखायी देती है.
वैसे इस ऋतु में जहां एक ओर मस्ती छायी दिखाई देती है . . तो कहीं . . विरह . . व्यथा . .भी दिखायी देती है .
प्रस्तुत निम्लिखित रचना में एक युवती का वर्णन है – जिसके पिया उससे दूर- (कार्यवश )’परदेस’ में हैं …और ‘वो’ कुछ इस प्रकार ….
ओ रे पिया, सावन ऋतु आई,
पलकें बिछाये, तेरी राह निहारूं
ओ रे पिया…..
बेला चमेली जूही ‘रातरानी’
महकी कलियां मस्त दीवानी
हरसिंगार ने ‘सेज’ सजाई
पुरवैया ने ली फिर, अंगड़ाई
ओ रे पिया…..
भोर भये बागों को जाऊं
चुन-चुन फूलों का हार बनाऊं
मंदिर में जा के प्रभु को पहनाऊं
करूं विनती मैं, तो ‘कर’ जोरी
ओ रे पिया………..
हाथों में हरी-हरी मेंह्दी लगा के
बालों में फूलों का गज़रा सजा के
भरी-भरी चूड़ियां बांहो में खनके
चुनरी मोरी
ओ रे पिया……….....
दादुर – बोले , मुरला – नाचे
पियु – पियु टेर पपीहा लगाये
सुन-सुन ज़ियरा में आग जगाये
कल ना पड़े, बनी मैं, तो बावरी
ओ रे पिया……………
सब सखियन के पिय घर आये
बिदीं – चूड़ी औ चुनरी लाये
अमुवा की डाली पे झूला झूलें
मन-हिंडोला,मेरो थम पाये ना,री
ओ रे पिया……..
सांझ भये बदरा घिर आये
रह – रह गरजे, बिजली चमके
धक – धक जियरा धड़के जाये
नींद ना आये,आजा ‘पी’ हरजायी
ओ रे पिया, सावन ऋतु आई,
पलकें बिछाये, तेरी राह निहारूंओ रे पिया……...
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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