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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस –” क्या बदलेगी महिलाओं की स्थिति ? “

KALAM KA KAMAL
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“अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ”  8’th March 2013

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” क्या बदलेगी महिलाओं की स्थिति  ? “


जी हाँ ,   jj  द्वारा दिए गए इस विषय में – मेरे विचार से अवश्य निकट भविष्य में शीघ्र ही महिलाओं की स्थिति बदलेगी ।

इस विषय  में-  मैं कुछ सुझाव देना चाहती हूँ ; परन्तु इसके पूर्व : दो शब्द सन्दर्भ हेतु….

8’th March  – “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ” हर वर्ष की तरह पुनः आ गया . पिछले कई वर्षों की तरह महिलाओं को सम्मानित करने के लिए इस ” अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ” को मनाया जाता है.  हर वर्ष कोई न कोई ख़ास थीम बनायीं जाती है . इस वर्ष  –

2013 Theme: THE GENDER AGENDA:GAINING MOMENTUM

” Over time and distance, the equal rights of women have progressed. We celebrate the achievements of women while remaining vigilant and tenacious for further sustainable change. There is global momentum for championing women’s equality.”

वर्तमान में हर तरफ  देश . . दुनिया में चारों ओर एक नई  हलचल अर्थात महिलाओं के प्रति नयी सोच नयी ..नयी दिशा से सम्बंधित अनेक  अभियान और विचार विमर्ष  दिखाई दे रहें  है .. अपने देश में दैनिक जागरण एवं jagaran junction  समूह सबसे आगे ..
जागरण समूह के दिन-प्रति -दिन प्रगति पथ पर बढ़ते कदम ऐसे ..अनेक जटिल एवं महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों को उजागर कर और सुनिश्चित दिशा देने में लगातार तत्पर हैं .

“समाज में  महिलाओं को पुरुष के सामान  – समानता का स्थान / समकक्ष का दर्ज़ा  मिल जाये – समान  अधिकार मिल जाएँ तो आशा की जा सकती है कि  उनकी सही अर्थों में –  सम्मान जनक स्थिति बन रही है .”

”  ईश्वर की सबसे अलौकिक सुन्दर ,आकर्षक और कोमल भावनाओं से परिपूर्ण रचनात्मक कृति के रूप में यदि कोई है तो वह” स्त्री “ ही है !”
ऐसा शास्त्रों में लिखा है – ” जहां स्त्री की पूजा ( सम्मान ) किया जाता है ; वहाँ देवता निवास करतें हैं ” –
काश यह  बात पुनः दोहरायी जा सके !

वर्तमान में महिलाओं की स्थिति – यूँ तो सर्वत्र प्रगति दिख रही है . महिलाएं  भी पहले से अधिक प्रगति -पथ पर अग्रसर नित्य दिख रहीं हैं …यदि “वे कहीं नहीं दिख रहीं हैं तो ..  सुरक्षित .”  आज हर ” नन्हीं बच्ची से लेकर युवा ..प्रौढ़ सभी महिलाओं के लिए  सबसे भयंकर स्थिति है; की वे कही सुरक्षित नहीं है; जाएँ तो कहाँ जाएँ . . ?और करें तो क्या करें ..?  चारों ओर  उनके तन-मन को उनके सम्मान उनके अधिकार यहाँ तक कि –  उनके अस्तित्व को नष्ट ..बर्बाद करने को आतुर …लोग दिखायी पडतें हैं ….

महिलाओं की दयनीय  सामाजिक स्थिति के क्या कारण हैं ?

मेरी समझ से शायद विज्ञान , मीडिया और Electronics के चमत्कार से  जो क्रान्ति आयी है उससे सारा जग विस्मय में पड़  गया है .

चारों ओर  विज्ञापन टीवी चलचित्र के अश्लील द्रश्य इन्टरनेट ..मोबाइल में अनेक अमर्यादित दृश्यों की भरमार होने से लोग इतने सकतें में विस्मय से …अपने होश खो बैठें हैं . उनके विवेक ने काम करना बंद कर दिया है मानो… इस हालत में उन्हें ..कब . .? क्या ..? कहाँ  . .? किससे .. ? और क्या करना उचित है ? तथा क्या अनुचित है  ? तनिक भी समझ नहीं ..फलस्वरूप दुष्परिणाम सामने आरहें हैं तेजी से…

इस क्रान्ति में महिलायें भी शामिल हैं , जिन्होंने न केवल अपना सम्मान , अधिकार बल्कि अपने अस्तित्व को भी ” खो” रहीं हैं- साथ ही इसी रफ़्तार के अंतर्गत कई महिला समूहों ने हज़ारों  मासूम महिलाओं – लड़कियों का जीवन बर्बाद किया है और करती जा रहीं है ..क्योंकि  एक बार जो किसी षड्यंत्र में गिरफ्त हो जाता है ; उसका वहाँ से मुक्त हो पाना संभव नहीं हो पाता है।
यहाँ – “औरत ही औरत की दुश्मन होती है ” इस प्रकार यहाँ यह बात चरितार्थ होती है .

परन्तु सभी महिलाएं तो ऎसी नहीं …आज भी अधिकांशतः महिलायें परिश्रमी और मर्यादित हैं ;

यदि पहले झाँसी की रानी . जीजाबाई , विद्योत्तमा , मदर टेरेसा , का नाम था तो आज भी – शकुन्तला , सुनीता , शहनाज़ हुसैन, किरन  बेदी, पी टी उषा ,चन्द कोचर , कमलेश जैन , जोसेफाइन, ऋतू कुमार डॉ ० मधु लुम्बा ,शाहिदा परवीन जैसे अनेक नामो की भरमार है . ये महिलाएं सुशिक्षित और संस्कारी हैं तभी अपनी गरिमामयी व्यक्तित्व को बना सकीं है .
वैसे अभी भी  बड़ी संख्या में महिलाएं उन .. सभी दुर्योधन / दुश्चरित्र लोगो ( पुरुषों ) से भयभीत नज़र आती जरूर हैं …..

यद्यपि दामिनी के  बाद भी रोज न जाने कितनी दामिनीयाँ  बर्बाद हो रहीं है परन्तु  ” दामिनी ” की घटना से एक वृहद जन-समूह ने जो जाग्रति दिखायी  है ; उससे सरकार भी सतर्क हुई है और महिलाओं के प्रति और सुरक्षित  नए कानून बनायेगी ऐसा प्रतीत होता है ; पर कठोरता से पालन हो जाये ..तो बड़ी बात …है .


” क्या बदलेगी महिलाओं की स्थिति  ? “

निःसंदेह  महिलाओं की स्थित बदलेगी . अवश्य एक दिन हर चीज का अंत होता है . अतः अवश्य स्त्रियों की स्थिति ..उनका मान- सम्मान अधिकार और अस्तित्व  पुनः उन्हें पहले से अधिक प्राप्त होगा .

क्योंकि अब पाप का घडा भरने में देर नहीं …यह पाप नहीं तो और क्या है.? अर्थात  व्यक्ति अथवा समूह द्वारा ऐसे किसी भी प्रकार से  महिलाओं का शोषण . . उत्पीडन ..उनका यौन शोषण ..बलात्कार – उनके साथ अमर्यादित आचरण  तथा  घोर दुःख देना -एक प्रकार से – ‘पाप कर्म’ हैं .अगर इंसान को तनिक भी होश आये तो युगों पूर्व और इतिहास से कई उदाहर लेकर समझ सकता है – हिरण्यकश्यप , रावण  कंस, दुर्योधन ओसामा-बिन-लादेन तथा क़साब इत्यादि कुछ उदहारण हैं जिनके पापों का अंत हो ही गया .. अर्थात अंत तो होगा . .निश्चित ।


मैं यहाँ  कुछ महत्वपूर्ण सुझाव देना चाहती हूँ  :

१- सर्वप्रथम   मैं ” घर” से शुरूवात  करतीं हूँ . घर  ही एक बच्चे / बच्ची या कहें की इंसान की प्रथम पाठशाला होती  है . और ‘माँ’ प्रथम ” गुरू !
अतः यदि वर्तमान में भी ( जैसा की पहले ) एक माँ  अपने बच्चों  अच्छे संस्कार देंती थीं ठीक वैसे ही आज भी माताओं को जहां अपनी बेटी को नेक सुसंस्कृत संस्कार के साथ-२ व्यक्तिगत और सामाजिक ज्ञान से सुरक्षा से उम्र के साथ-साथ सचेत कर समझदार बना सकती हैं तो दूसरी और अपने ” लाडले ” यानी ” बेटे ” को भी -मुख्यरूप से  माँ -बहन- पत्नी  बेटी तथा अन्य  महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए यानी  तथा उनके प्रति पाक – साफ़ नज़रिया और मर्यादित आचरण करना सिखाना चाहिए .
साधारणतः देखा जाता है -कि -कहीं -२ किन्हीं -२ घरों में – माँ – ही बेटा – बेटी में भेद कराती है अतः ऐसा नहीं करना चाहिए अपने बेटों को भी सभी सुसंस्कृत और सदाचारी बनायें .तभी परिणाम अच्छे मिलेंगे ..तभी सभी बेटियाँ  सुखी – और सुरक्षित रह सकेंगी .

२- अपनी व्यस्ततम जिन्दगी से पिता को भी – कुछ समय अपने बच्चों को देंना चाहिए  . उनको उम्र और पढ़ाई  के स्तर को ध्यान में रखते हुए समुचित मार्गदर्शन करना चाहिए . बच्चों की जिज्ञासा को सही तरीके से शांत करना चाहिए .  बेटी- और बेटे में बिना भेद-भाव किये भविष्य में आगे बढ़ने और सफल होने की सलाह देना चाहिए .  अर्थात हर प्रकार से  बच्चों के मस्तिष्क का स्वस्थ विकास हो इस ओर  ध्यान देना आवश्यक है. तभी जब हर इन्सान घर से ही अच्छे संस्कार लेकर बाहर  निकलेगा तो बाहर  भी एक प्रकार से स्वस्थ वातावरण ही बनाएगा .

३- स्कूल अर्थात शैक्षिक वातावरण स्वस्थ ज्ञान के स्टार को बढाने वाला होना चाहिए – में सुयोग्य  टीचर जो बिना किसी भेदभाव के  ( अमीर/ गरीब ) अथवा  राजनैतिक प्रभाव के छात्रों और छात्राओं का ज्ञान बढ़ाएं . इतना ही नहीं उनको भावी और समझदार नागरिकता के वे सभी नैतिक गुणों का संचार करें .

४- वर्तमान में “sex science” के ज्ञान की बात उठ रही है तो मैं समझती हूँ कि – उम्र के साथ-२ इसका ज्ञान -देना उचित है . पर अलग -२ एक साथ नहीं ..यानि लड़कियों को लेडी टीचर और यदि  लेडी डॉ ० से – साप्ताहिक या महीने में दो- या तीन क्लास लेने को बुलाया जा सके तो बेहतर होगा  और लड़को के लिए मेल डॉ ०/ चिकित्सक को . शायद उनके द्वारा दिए ज्ञान से कोई छात्र अथवा छात्रा पथभ्रष्ट नहीं हो सकेंगे . क्योंकि इस प्रकार से शैक्षिक कार्यक्रम से सही परिणाम निकल सकतें हैं .

५- फिल्म निर्माता सिर्फ अपने व्यवसाय हेतु समाज का  ढाँचा न बिगाड़ें – ऎसी अश्लीलता से भरपूर फ़िल्में न बनाएं कि  समाज में “महिलाओं की स्थिति उनकी गरिमा गिरती जाये – वो उपयोग और भोग की मात्र वस्तु दिखे . ना ही ऐसे दिलदहलाने वाले क्रूरतम  द्रश्य  दिखाएँ  कि – समाज में और अपराधिक प्रव्रत्ति लोगो में जाग्रत हो . वैसे भी प्राचीन समय से नाटक अभिनय और फिर सबसे अधिक प्रभाव जन-मानस पर फिल्मों का ही पड़ता है . इस ओर भी सरकार की ओर  से ऐसी किसी भी प्रकार की फिल्मों पर प्रतिबन्ध होना ही चाहिए .
यह उचित होगा कि -( फ़िल्में मनोरंजन करें पर अमर्यादित भावनाएं न पनपने दें .)

६- साइबर  नेटवर्किंग अर्थात इन्टरनेट पर भी किसी न किसी प्रकार से अंकुश लगना चाहिए . क्योंकि यह जरा -२ सी उम्र के बच्चों को अपनी पकड़ में ले रहा है – और उनका गलत मार्गदर्शन कर रहा है .

७- महिलाओं के मान- सम्मान की सुरक्षा हेतु सरकार को सख्त से सख्त नियम-क़ानून बनाने होंगें .कुछ ऐसा हो कि – किसी भी महिला को कहीं कोई गिद्ध निगाह डाले या तनिक भी उनके शील  भंग करने का साहस  करते ही महिला के पास ऐसा रिमोट बटन हो , जिससे की तुरंत उसकी सुरक्षा के लिए ” सुरक्षा कर्मी ” पहुँच जाएँ . इसके साथ ही उनको आत्म सुरक्षा के भी गुर में महारथ हासिल करना होगा .

८- महिलाओं से भी यह कहना चाहूंगी कि – प्रथम  अपने शैक्षिक स्तर  पर मज़बूत करें .अपने को किसी भी प्रकार से कमजोर न समझें .परन्तु    वे भी इतनी उन्मुक्त ..इतनी  आजादी ..खुलापन न दिखाएँ – जो उनके ही लिए कभी घातक साबित हो .
अपने को गरिमामयी और सम्मानित बनायें न की उपभोग की वस्तु कहलायें . अतः ऐसा कोई काम न करें जिससे वे अपना अस्तित्व खो दें .
स्वयं को ईश्वर  की अनुपम कृति मान धन्य भाग्य समझें !



अंत में इतना कहना चाहूंगी कि कोई भी काम मुश्किल तो हो सकता है पर असम्भव नही . रात्रि के बाद सूरज निकालता ही है ..हाँ बदली हो बरसात हो तो भी दो चार दिन बाद ही सही “सूरज ” निकल ही आयेगा . अतः इस प्रकार यह बात स्पष्ट है की शीघ्र  ही निकट भविष्य में महिलाओं की स्थिति पहले से और अधिक गरिमामयी  बन जायेगी .

” अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस ” पर सभी महिलाओं को हार्दिक बधाई !




मीनाक्षी श्रीवास्तव


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