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बसंतोत्सव / “बसंत पंचमी”

KALAM KA KAMAL
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बसंतोत्सव  / बसंत पर्व / “बसंत पंचमी” अथवा मधुमास पर्व ….


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अपने देश भारत में – शीत ऋतु  के बाद मधुमास  अथवा बसंत ऋतु का आगमन होता है . यह ऋतु बड़ी मस्त . .बड़ी मनभावन होती है।
शीत काल में  प्रकृति का  वो सबकुछ जो कड़क ठंड से  नष्ट अथवा सुशुप्त अवस्था में हो गया था वो पुनः नवीन रूप में हर बार से और सुन्दर शक्तिवान और स्फूर्तिमय हो चारो दिशाओं  के वातावरण को आच्छादित कर देता है . अर्थात हमारे चारों ओर  प्रकृति के नज़ारों  में खुला आकाश और वृक्ष – पेड़ – पौधे लताएँ ..बाग़- बगीचा ..ही द्रश्यमान होतें है . तो कहने का तात्पर्य यह कि – इस समय खिली -2 धूप  बेल- लताओं में  नए-2 पत्ते – कोंपलें ..मंजरियाँ तथा  रंग- बिरंगे -सुंगंधित फूलों के गुच्छों से सजे ..पेड़ – पौधे साथ ही स्वादिष्ट फलों से लदी  वृक्षों – की डालियाँ ..कलरव करते ..पक्षी- गण ..मस्त चलती बयार किसको नही आनंदित कर देती है  . .? अर्थात सभी लोग इस बसंत ऋतु  में प्रसन्नचित्त  स्वतः हो जातें हैं . यह सभी को खुश करने का ” क़ुदरत का अनमोल तोहफ़ा ” ही समझना चाहिए . वैसे  सभी मौसम . . . ऋतुएँ  अपनी -2 अलग-अलग  विशेषता लिए  होतीं है . पर मधुमास की विशेषता  इसको अपने आप में विशेष होने के कारण इसे  सर्वोपरि  बना देती है।
हमारे भारतीय शास्त्रीय संगीत में इस मौसम के कई ” राग ” और अनेक गीतों का भण्डार है . एक राग  तो ” राग-बसंत ” के ही नाम से जानी जाती है .
इस पर्व और मधुमास के बारे में हमारे अनेक कवियों ने -रचनाकारों ने कई उल्लेखनीय वर्णन किया है ; उनमें से ” कालिदास ” का नाम कौन भूल सकता है , भला ?

बसंत पर्व से जुडी कई किवदंतिया , कथाएं अथवा प्रसंग इत्यादि  जाने जातें हैं . जैसे महादेव और कामदेव , श्री राधा – कृष्णा .
इस दिन सभी लोग “माँ सरस्वती ”  का पूजन अर्चन करते हैं। पीले  फल और प्रसाद चढ़ाते है। इस दिन लोग बसंती रंग के वस्त्र धारण करते हैं .इतना ही नहीं घर में भोजन पकवान भी पीले रंग यानी बसंती रंग के बनातें हैं . लोग पतंगे उडातें है .   बुंदेलखंड के कहीं -2 घरों में कुछ स्त्रियाँ पीले  फूलों की चौक बना कर , बीच मैं ‘गौर’ रख पूजा करतीं  हैं ” सुहाग ” लेती हैं .यानी इस बसंत पर्व को लोग पूरे तन-मन धन से बसंती बन बसंतोत्सव  को धूम- धाम से  मना कर आनंदित होतें है .

इस दिन संगीत से जुड़े – संगीतज्ञ , साधक – गायक सभी माँ शारदे की वंदना कर,  सभी शास्त्र यंत्रों वाद्यों की पूजा करतें हैं तथा अनेक प्रकार संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन भी करतें हैं . वैसे लगभग पूरे मधुमास ही गीत- संगीत और नृत्य के शास्त्रीय तथा  रंगारंग  कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं .

images sarswati


” बसंत पंचमी  के शुभ पर्व” पर  मैंने-  ” माँ शारदे ” की कृपा  से हर वर्ष की तरह उनका ही एक वंदन- गीत/ स्तुति- गान  लिखा है; जिसे मैं
आगे .. लिखने जा रहीं हूँ –

“ जय माँ शारदे”
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( स्तुति – गान )

हे ब्रह्माणी – सरस्वती  ,
हम करते हैं, तेरी स्तुति
हे ब्रह्माणी ……….


शीश मुकुट कानों में कुण्डलं
शुभ्र – वस्त्र- सु-शोभितं
हंसवाहिनी बनके, सारी
दुनिया –  के  दुःख  हरतीं

हे ब्रह्माणी ….

एक हाथ से ज्ञान – दानं
दूजे हाथ ‘जप’ – ध्यानं
कर कमलों से वीणा बजा
सारे भव  में ‘सुर’  भरतीं

हे ब्रह्माणी ….


सब जन आते तेरी शरणम
जन- राजा –  मुनीश्वरम
सबको अपनी  कृपा से
जग में ‘सु -यशी ‘ करतीं


हे ब्रह्माणी – सरस्वती  ,
हम करते हैं,तेरी स्तुति
हे ब्रह्माणी ….



सभी को ” बसंत पर्व ” की बहुत- बहुत हार्दिक बधाई !

दो शब्द ..और मैं इस अवसर पर कहना चाहूंगी …कि—–
सभी इस पर्व को अपने जीवन वास्तविकता से उतारने का प्रयास करें अर्थात जब तक है’ तन-मन में जान’ तब तक हर किसी को जीने का और आनंदित रहने का अधिकार है ; किसी को किसी भी प्रकार उदास न होकर जीवन के हर पलों का प्रभु की अमानत समझ जीना चाहिए …खुशी से …उल्लास के साथ परन्तु मर्यादा के साथ  ।


पुनः शुभकामनाओं के साथ . . . .


मीनाक्षी श्रीवास्तव

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