ऐसे महान कवियों और शायरों का क्या कहना …..
ऐसे महान कवियों और शायरों का क्या कहना …..
अधिकांशतः कवियों ने शायरों ने स्त्रियों / नारियों के नख से शिख तक की सुन्दरता पर , उसके सौन्दर्य गुणों एवं
कोमल हाव -भावों पर हज़ारों कविताएँ गढ़ी है . कवि बिहारी,जायसी ,बाण भट्ट , महाकवि कालिदास और
महाकवि दंडी इत्यादि का श्रृंगार रस का कोई जवाब ही नहीं ऐसा ऐसा वर्णन किया है . ठीक ऐसे ही शायरों ने भी
ग़ालिब,क़ामिल, साहिर इत्यादि वैसे नाम तो और भी बहुत हैं .
जहां तक मैं समझती हूँ कि – हम सभी हिंदी, संस्कृत पढ़ने बोलने वाले उपर्युक्त अनेक नामों और उनके काव्यों ..साहित्य तथा शेर –
शायरियों से परिचित हैं – फिर भी कुछ लोगों की इच्छा है कि कुछ उदाहरण हो तो …इसलिए …पढने वालों का
हमें ध्यान रखना ही चाहिए – उनका सम्मान करना चाहिए . अतः मैं यहाँ पर अधिक नहीं पर हाँ – कुछ उदाहरण स्वरूप “कवि
बिहारी “के काव्य रचनाओं में से देना चाहूंगी :-
“काजर दै नहिं ऐ री सुहागिन, आँगुरि तो री कटैगी गँड़ासा”
“भूषन भार सँभारिहै, क्यौं इहि तन सुकुमार। |
सूधे पाइ न धर परैं, सोभा ही कैं भार।। “ |
” गोरे मुख पै तिल बन्यो,
सोनजुही सी जगमगी, अँग-अँग जोवनु जोति।”
“कहति नटति रीझति खिझति, मिलति खिलति लजि जात।
भरे भौन में होत है, नैनन ही सों बात॥”
निम्नांकित एक वर्तमान कवि की कविता का एक अंश मात्र द्रष्टि डालें –
“रूप उनका है गुलाबी फूल सा,
पंखुड़ियों से अंग खुशबू से भरे “
अब मैं कुछ शायरों के शेरों – शायरियो के अंश ….पेश कर रहीं हूँ –
मिर्ज़ा ग़ालिब – “ हजारों ख्वाईशें ऐसी के हर ख्वाइश पे दम निकले …”
क़ामिल – इन मस्त निगाहों का इक दौर जो चल जाए ….
साहिर – कौन कहता है मुहब्बत की जुबां होती है…
रूह को शाद करे दिल को जो पुर नूर करे …
हर नज़ारे में ये तनवीर कहां होती है
आज से नहीं .ज़माने से …ये महान कवि और शायर ऎसी अनेकों कृतियाँ ..रचनाएं गढ़ते जा रहें हैं – जिन्हें
सुनकर – पढ़कर लोग ‘ वाह-वाह ‘ करते नहीं थकते .
..कहिये कुछ वर्णन सुन…. लोग दांतों तले अंगुलियाँ ही दबा लें ….क्या खूब…
भई … ऐसा वर्णन … कवि जनो की / शायरों की तारीफ़ की झड़ी लग जाती है ..प्रसिद्धि मिल जाती है …मशहूर
हो जातें हैं .
“यद्यपि यह सच है कि कभी किसी विशेष घटना ..परिथिति में अथवा आवश्कतावश कुछ रचनाएँ ..फिर वह किसी
भी प्रकार की हों लिखी जातीं हैं .”
परन्तु मेरा विषय यहाँ ” नारी सौन्दर्य और उसके नाज़ुक ..हाव-भाव “..इत्यादि से है ..जिसका कवियों ने शायरों ने तथा अन्य लोगो ने
बाखूबी ज़िक्र किया है ..और आगे भी ..
लोग कहीं… सोचते भी होंगे कि शायद इनकी ‘प्रेयसी’ अथवा ‘पत्नी’ ऎसी होगी . पर काश ..कि .. ऐसा होता …
वह अपनी पत्नी की सुन्दरता से उसके कोमल ह्रदय उद्गारों से ..नाज़ुक हाव-भाव से वह कितना परे है! ..वह कितना
अनजान है!… वह कितना बेखबर है ! यह….” उस कवि की पत्नी ” से पूँछिये ..ये ‘वो’ ही जानती है बेचारी !
ये कैसी विडंबना है !
जिस पर वह मर मिटती है उसके ‘ वो ‘ कहीं….और…खोये रहते हैं …
हाँ , यदि किसी कवि ने धोखे से …अपनी पत्नी की तारीफ़ में चंद शब्द बोले भी तो ” तीर-कमान ” बोले …ऐसे
व्यंग भरे होंगें ..कि -बस ……
ऐसे कवियों को / शायरों को क्या कहा जाय ?
अर्थात ..मैं यह कहना चाह रही हूँ कि – कवियों शायरों को कभी अपनी ‘ पत्नी ‘ / अर्धांगिनी की ओर तो नज़र
डालें उसके प्यार से हलाहल ह्रदय में डूबे ; उसके उन हर… ज़ज्बातों को जाने – समझे उन पर शेर या कविता बना
कर तो देखें वो सच्ची कविता ..या फिर शेर ..या फिर कोई प्यारा गीत बनेगा .
केवल कल्पनालोक में अथवा परनारी की सुन्दरता पर ही नहीं सार्थक कविता ..रूप लेती है…
नोट :- क्षमा करें – एक बात मैं स्पष्ट कर देना चाहतीं हूँ कि– हर व्यक्ति स्वतंत्र है – अपने विचारों को दिशा देने के लिए। अतः उपर्युक्त विचार मेरे अपने है. किसी कवि, शायर अथवा किसी के मान को चोट पहुँचाने से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है . धन्यवाद।
मीनाक्षी श्रीवास्तव
Read Comments