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पर…..
इस महत्वपूर्ण पर्व का मुख्य उद्देश्य सभी लोगों की समझ में आ जाए तो इस पर्व की सार्थकता साबित हो ; तत्पश्चात शायद इसका दुगना ही महत्व दिखाई देगा ….
यों तो हर व्यक्ति अपने आप को बुद्धिमान, समझदार, सज्जन एवं स्वयं को हर बुराई से निर्लिप्त समझता है पर काश ऐसा हो पाता …अर्थात यह सत्य नहीं है . सभी में कुछ न कुछ बुराई, अवगुण अथवा दोष होते हैं, कुछ सामान्य दोष जैसे -(क ) आलस्य …लापरवाही इत्यादि ।
कुछ लोगों को में बड़े ही भयंकर दोष होतें हैं जैसे- (ख) लोभ , अहंकार, दूसरों का अहित चाहना और करना तथा क्रोध – ये सब इतने बुरे दोष है जो किसी भी व्यक्ति को अपराधी प्रवृत्ति का बना देतें है . इन दोषों के कारण चाहे वह व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान क्यों ना हो – यदि इनमें से एक भी भयंकर दोष उस पर समा गया तो समझिये कि उसका बेड़ा …ग़र्क …….
(ख) श्रेणी में आने वाले दोषों की चरमावस्था इंसान का आत्म-नियंत्रण ही नष्ट कर देता है .जिससे उसका पतन दिन-प्रति-दिन निकट आने लगता है . ” रावण ” का उदाहरण स्पष्ट है . जिसके पास स्वयं में दस सर अर्थात दस लोगों के दिमाग़ के बराबर दिमाग़ अथवा बुद्धि थी फिर भी उसका कैसा पतन हुआ ..? आज भी कोई उसका नाम लेना शुभ नहीं मानता है …क्यों ?
हमारे प्राचीन अनेक विद्वान् जनों ने और मनीषियों ने अनेक ऐसे ग्रंथों और महाकाव्यों की रचना की है – जिनमें अनेक प्रकार से जीवनोपदेश दिया है . बस आवश्यकता इस बात की है कि हम उसके गूढ़ अर्थों को समझ सकें .जिससे अपना तथा दूसरों का जीवन सुखी एवं खुशहाल बना सकें !
एक विशेष बात ..इस पर्व में अर्थात विजयादशमी के विजयोत्सव पर्व के उपलक्ष्य पर कहना चाहूंगी – हर इंसान सर्वप्रथम अपने भीतर के अन्दर के रावण को जलाए / नष्ट करें . अगर ऐसा हो सका तो पूरी दुनिया में कही कोई ” रावण ” नज़र नही आयेगा . जब जागो तब सवेरा इस वर्ष आज से ही ‘ जागने ‘ का प्रयास करें ! कोई देर नहीं हुई . परन्तु जागना तो होगा ..बिना जागे तो कुछ भी नहीं ….
विजयादशमी विजयोत्सव पर्व को सार्थकता प्रदान करें ….!
” दशहरा ” के पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं !
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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