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“ विवेकशून्य व्यक्ति अल्पज्ञानी से भी अधिक खतरनाक होता है ”
वास्तव में इंसान जब भी विवेक शून्य हुआ चाहे जो भी परिस्थितियां रहीं हों तभी वह इंसान से हट कर कुछ और ही स्वरूप धारण कर लेता है ; कुछ और ही बन जाता है ।
व्यक्ति विवेकशून्य कब और क्यों हो जाता है?
वैसे कई वज़ह / कई कारण हो सकते है ; परंतु जो कारण मुख्यरूप से दिखाई देते हैं वह निम्नलिखत है:
1. विपरीत या दुस्सह परिस्थितियां
2. अपार धन सम्पदा का मद
विपरीत या दुस्सह परिस्थितियां :
जीवन में जब कभी इतनी अधिक लाचारी, मज़बूरी, दु:ख छाया हो, और भविष्य अंधकारमय नज़र आने लगे तब यदि उसे तनिक भी किसी माध्यम से अपने इन समस्याओं से निज़ात मिलती दिखाई देती है; वह सुखी हो सकता तो अकसर कुछ लोग गलत पथ पर अग्रसर हो जाते हैं ।
बहुधा देखा गया है कि लोगों का बेहद तंगहाली या उपेक्षित जीवन जीने से तंग आ चुके होने के कारण भी उनका विवेक शून्य हो जाता है और वे ऐसा कदम अर्थात अपराध की ओर बढ़ जाते हैं । जो पहले भले शरीफ इंसान कहलाते थे, यद्यपि उनकी परिस्थितियां ठीक नहीं थीं फिर भी समाज में वे बदनाम नहीं थे । पर बाद में उनके गलत उठे कदम उन्हें समाज में एक अपराधी या एक आतंकवादी की पहचान दिला देते हैं; जिनसे समाज तो क्या उनके अपने ही घर के सदस्य दूर भागते हैं । कोई भी शरीफ व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में आने से डरता है । डरता है कि बेवज़ह कहीं वह भी ना संदेह के घेरे में आ जाय । तो इस प्रकार लोगों का विवेक शून्य होना कितना भारी पड़ जाता है..? और वह जिन दुखों से निज़ात पाना चाहता है उससे भी कहीं अधिक दु:खों..मुसीबतों से घिर जाता है ।
अपार धन सम्पदा का मद
अपार धन सम्पदा भी तत्काल लोगों का विवेक हर लेती है । वह इतने अहंकार में डूब जाता है कि …बस सारी दुनिया उसके कदमों तले जान पड़ती है । फिर उसका अविवेक उससे जो ना करा ले वो थोड़ा । कहतें हैं “अहंकार व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है” ।
प्राचींकाल से लेकर वर्तमान तक जितने भी अपराध, दुराचार, वैमनस्यता और हैवानियत दिखायी पड़ी है । वह ऐसे ही लोगों द्वारा ..जिन्होंने विवेक शून्यता की कोई कसर नहीं छोड़ी..और बाद में उनका क्या हाल हुआ ..ये भी सर्वविदित है कुछ तो पश्चाताप ..की अग्नि में जले । कुछ ने बड़े शर्मनाक हो जिंदगी से विदा ली । “सिकंदर” एक ही नाम याद करते अन्य कई उदाहरण स्वत: याद आ जाते हैं ; जिनके हर एक अपराध से सम्भवत: हर बुद्धिजीवी और ज्ञानीजन अवगत हैं । उसका विस्तृत वर्णन करना जरूरी नहीं…लग रहा है…
कैसे विवेक पर नियंत्रण रखें ?
सच बात है… सोचा जाय कि.. कैसे इस पर व्यक्ति का नियंत्रण हो सके? यदि ध्यान दें तो एक बड़ी साधारण सी बात है जब सारी दुनिया बनाने वाला प्रभु है ! ईश्वर है ! केवल उसी की सारी सत्ता है । केवल उसी की ही सारी दौलत है । वह जिसे जो चाहे दे सकता है ; जब जो चाहे किसी से कभी भी वापस ले सकता है .फिर…..?…फिर……भी? “ जब सारा जीवन मात्र उधारस्वरूप मिला है, आने वाला एक एक पल कब किसे दगा दे जाय …जान नहीं सकते ..किसी का कोई वश नहीं ..फिर क्यों…यह इतनी सी साधारण सी बात समझ में नहीं आती…? और दुर्लभ मानव जीवन को दानव जीवन में परिवर्तित कर डालते हैं…और फिर अंत तो पता ही है, कि कैसा होना है…?
सम्भवत: दुनिया के किसी भी धर्म में गलत कार्य को, अन्याय, अत्याचार को बढ़ावा नहीं दिया गया है । और हर व्यक्ति कोई ना कोई धर्म का अनुयायी बनता है; फिर…क्यों ऐसी भूल कर बैठता है ?
भूल करने की सिर्फ एक ही वज़ह मेरे समझ में आती है वह ये कि व्यक्ति का “उस परम परमेश्वर” की याद ना रखना; उसको भूल जाना ।
यह हर प्रकार की परिस्थितियों में अत्यावश्यक है कि सदा उस दिव्य परम पिता पर्मात्मा को नमन करते रहना चाहिये.
उन्होंने दिन रात बना कर जीवन का सबसे गहरा सच उज़ागर किया है. अर्थात दु:ख ,कष्ट कभी सदा नहीं रहने वाला होता है.. अत: धैर्य रखना चाहिये …नेक करम और नेक रास्ते को ही अपनाना चाहिये .
स्वयं प्रभू अथवा कोई भी फरिश्ता किसी धर्म में जब अवतरित हुए तो उन्होंने भी अनेक कष्ट सहे अर्थात यह साबित किया कि जीवन संघर्षमय होता है; कोई भी समय एक सा नहीं रहता है। अत: नेक कार्य ही कल्याणकारीऔर सुखदायी होता है; भले पथ थोड़ा कठिन ही क्यों ना हो..?
इसी प्रकार बहुत धन दौलत सत्ता मिली है चाहे जैसे भी मतलब आपके पूर्वज़ों से अथवा स्वयम से अर्ज़ित की हुई दोनों ही स्थितियों में , अहंकार ना करके मद में ना आकर उसका भरपूर सदुपयोग करना चाहिये तब तो भला होगा वरन यह ‘ आपका ‘ क्या से क्या हाल कर दे…आप सोच भी नहीं सकते….? “प्राचीन काल के उदाहरण में रावण, कंस, ह्रिण्यकश्यप और वर्तमान में कई उदाहरण हैं…सभी जानतें हैं और जान जायेंगे प्रतिदिन के समाचार उनकी तस्वीरें पेश करते आ रहे हैं ।
अंत में इतना कहना चाहूंगी कि इंसान को यह पूरी तरह विश्वास होना चाहिये कि “ ईश्वर ही उसका परमपिता है ” और किसी भी पिता का उद्देश्य अपने बच्चों को दुखी करना नहीं होता है । हाँ, यदि बच्चे को नादानी वश कहीं कोई चोट लगी है या आग से हाथ जल गया है तो कुछ वक़्त लगेगा पर सब ठीक हो जायेगा । वैसे भी समय सारे घाव भर देता है ।कभी भी सदा रात्रि नहीं रहती सूरज उगता ही है । अत: कभी कुपथगामी ना बने; क्योंकि भले यह कदम आपने परिवार में से किसी के कष्ट को दूर करने के लिये ही क्यों ना उठाया हो आगे चलकर वह भी आपसे नाता तोड़ लेगा “युगों पहले “बाल्मीकि जी का उदाहरण ध्यान कर लेना चाहिये” कैसे परिवारवालों ने उनका साथ छोड़ा था, जिसके फलस्वरूप फिर वे एक “डाकू से साधू“ बन गये थे । इसी प्रकार धन और ताक़त के अहंकार से विवेकशून्य हो, दस सिर अर्थात दस दिमाग के बराबर बुद्धिमान समझे जाने वाले रावण का क्या हाल हुआ था ? सिकंदर का क्या हुआ..? अंत में खाली हाथ गया था । और यह सच है सभी खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ जातें हैं । शायद यदि कुछ साथ जाता है या उनके जाने के बाद उनका कुछ बाकी बचता है, तो वह उनके नेक करम उनका यश या अपयश ।
वर्तमान में विवेकशून्य अनेक लोगों का जो हाल है कितना बचना चाहें पर अब तक कोई नहीं बच पाया तो वे क्या बच पायेंगें । कितनों के कलुषित चरित्र और विवेकशून्यता सभी के समक्ष आ चुकी है । जिनका अन्य लोगों ने काफी विस्तार से उनकी चर्चा भी की है ।
सभी हर परिस्थिति में विवेकशील बने रहें ; इस शुभकामना के साथ मैं अपने शब्दों को विराम देना चाहूंगी….
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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