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क्या उन्हें संत कहना उचित होगा ..?

KALAM KA KAMAL
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क्या उन्हें संत कहना उचित होगा ?

अभी कुछ ही दिन पहले की बात है, समाचार पढने में आया था – ” किसी संत ने घूँसा मारा “.

वो व्यक्ति जो क्षणिक आवेश में आकर “घूंसा” मार दे ; आपे से बाहर हो जाय ; स्वयं पर

संयम ना हो ;उचित  अनुचित का ज्ञान ना हो तो क्या वो संत का दर्ज़ा प्राप्त करने लायक

होगा..?  शायद …क्या बिल्कुल भी..नहीं .यह तो लोगों के अंदर जाग्रुकता और विवेक की

इतनी अल्पता है कि .. वे आत्मविष्लेशण नहीं कर पाते और मात खाते रहतें हैं..और ना

जाने कब तक खातें रहेंगे …..?


यह अंधविश्वास नहीं तो और क्या है ? यह अज्ञानता का अंधकार नहीं तो और क्या है ?

सोचने की बात है जो व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सकता है, जिसमें वास्तव में संत के जो गुण- भाव हमारे शास्त्रों में बताये गएँ है नही दिखायी देते उनसे ज़रा संभल कर रहें ; तभी कल्याण है अन्यथा…

प्रत्यक्ष घतना से भी जिनकी आंखें ना खुलें……ज्ञान का आलोक न उदय हो …उन लोगों का

क्या होगा ..?


हे प्रभू ! दया करो !

मीनाक्षी श्रीवास्तव

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