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“श्री कृष्ण जन्माष्टमी “
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” श्री कृष्ण जन्माष्टमी ” आते ही, उनकी ‘ झाँकी ‘ याद आती है . याद आती है बचपन की ;वो बात जब — घर में हम सब भाई-बहन मिल कर कितनी सुन्दर झाँकी सजाते थे. उस समय झाँकियों का बड़ा चलन था .लगभग हर घर में इस अवसर पर भगवान् श्री कृष्ण जी की झाँकी सजाई जाती थी और पूरे (६) दिन तक भजन कीर्तन ..और प्रसाद बंटता. पूरे मोहल्ले में अपनीसबसे अच्छी झांकीहो ; मानो एक प्रकार की प्रतियोगिता सी लगती थी .
मम्मी का प्रसाद बनाना, और ना जाने कितने व्यंजन बनाती थीं. हम लोग व्रत रखने के बहाने … सारा दिन मम्मी द्वाराबनायीं ,गयीव्रत वाली ढेरों चीजें खा- खाकर बड़े मजे करतेथे. फिर रात्रि में खीरे से भगवान् जी का जन्म कराना ; घंटा – बजाना ;आरती करना सब याद आता है .
कृष्ण जन्माष्टमी में विभिन्न प्रकार के आधुनिक ढंग से बज़ार सजतें ज़रूर हैं. आज लोगों के पास व्यस्ततम जीवन की आपा धापी में फुर्सत ही नहीं है; कि…
कुछ विशेष लोगों (कमेटी) द्वारा आस पास के रहने वाले लोगों से चंदा इकट्ठा कर , इस अवसर पर एक सुंदर आयोजन करतें है. जहां श्री कृष्ण लीला से लेकर भजन कीर्तन का भी कार्यक्रम होता है .सभी लोगों के कार्यक्रम देख्नने और प्रसाद वितरण की व्यवस्था होती है. समय के साथ परिवर्तन होते रह्ते हैं.
कुछ भी हो पर “श्री कृष्ण जन्माष्टमी ” का नाम आते ही और भी कई चित्र स्वतः द्रग समक्ष उभर आते हैं यथा — सबसे पहले , जन्म के तत्पश्चात वासुदेव जी द्वारा कन्हा को एक डालिया / सूप में उनको ले जाना , मैया यशोदा का उनको पालना झुलाना , कन्हा का माखन, मटकी से खाते हुए चित्र का ध्यान आता है ..और फिर धीरे धीरे वो सभी चित्र जो बचपन से देखती आई हूँ; एक -एक कर आँखों के सामने आ जाते है – जैसे – यशोदा जी का कन्हैया के कान खींचना , मिट्टी खाने पर उनका मुख खुलवाना , गायों के संग , गोपियों के संग , राधा के संग झूला – झूलते व बंशी बजाते और फिर …दौपदी की साडी बढ़ाना एक कौतुहल सा चित्र महाभारत के वो दोनों चित्र भी जब वे अर्जुन का रथ हाँकते हैं और अंत में वो जब वह अर्जुन को ” सत्य ” अर्थात ” गीता का ज्ञान /उपदेश देतें हैं आदि – आदि. अर्थात उनकी बाल लीलाएं से लेकर कर्म-धर्म सभी कुछ जो भी पढ़ा – सुना देखा जाना है – सभी कुछ मानस-पटल पर अंकित होता चला जाता है .
शायद जगत में ऐसा कोई नहीं हुआ होगा जो ‘ कृष्ण कन्हैया’ की मोहनी सूरत का दीवाना ना हुआ हो . कहते है- “श्री कृष्ण जी” के सामने सहस्त्रों कामदेव का रूप भी फीका लगे .. नर- नारी , खग- मृग , पेड़ – पौधे तक उनको निहार कर मानो नव – जीवन पाते थे .
और यह आज भी सच लगता है ;क्योंकि हम लोग तो मात्र उनकी फोटो / चित्र ही देखते हैं और मानो उनके वशीभूत हो जातें हैं. तो….वास्तविकता में …..? और हों भी क्यों नहीं ; वे ईश्वर जो थे .
“वास्तव में ” वह साक्षात् ईश्वर के रूप ” में अवतरित हुए थे .और अपनी योग माया से प्रगट हो सारे महान कार्यों को नषपादित किया था. अत्याचार और अन्याय करने वालों से ‘उन सभी पीडित जनों ‘ को बचाया . उनका अद्भुत स्वरूप सभी को स्वत: वशीभूत कर लेता था .”
रासलीला कहते हैं; वास्तव में वो एक उनकी रहस्य लीला थी ) और या फिर कोई उनके गीता के ज्ञान से प्रभावित होते हैं ; पर होते अवश्य हैं. “सूर दास ” और “मीरा बाई ” को कौन नहीं जानता ?
हमारे भारतीय शास्त्रीय संगीत में तो अधिकांशतः “श्री कृष्ण जी” के ही..गीतों / भजनों .. का संग्रह मिलता है.
धर्म सम्प्रदाय बना लिए हैं और ” उनकी गीता की ” बातें / ज्ञान की चर्चा कर, जग में प्रसिद्धी अर्जित कर रहें हैं. यह भी प्रभु की माया है. वैसे भी “ हरी का नाम सदा सुखदायी ” होता है.
“श्री कृष्ण जी की रहस्य लीला को” ‘ रासलीला ‘ कह कर अपनी मनमौज़ी करते फिरते हैं ; और कहतें हैं कि जब ” वो ” करते थे ..तो क्यों नहीं हम भी…… ? काश ! कि उनके ज्ञान के पट खुले होते , तो वे “ उस सच “ को समझ सकते…पर..बिन हरी कृपा ज्ञान भी कहाँ उपज सकता है…?
कितनी हास्यास्पद बात लगती है… एक मनुष्य …जिसकी अणु मात्र भी हस्ती न हो; वो प्रभु से बराबरी करे………….?
प्रभु अपरम्पार परमानंद की अनुभूति करा देने वाली वह दिव्य अलौकिक शक्ति है. हम सब तथा जड़-चेतन सभी कुछ उसके आधीन हैं. हम उससे तत्काल आकृष्ट हो जातें हैं . हम जितनी देर उसके ध्यान में खोये रहतें हैं उतनी देर परमानंद के सरोवर में मानो गोते लगाने जैसा प्रतीत होता है ; और होना भी चाहिए. ईश्वर एक सकारात्मक उर्जा का भी दूसरा नाम कहें तो गलत नहीं होगा ; क्योंकि जब तक हम या कोई भी उससे जुड़ा रहता है कोई कभी – गलत / वर्जित / नकारात्मक जैसे कार्य नहीं कर सकता है अर्थात अपना और दूसरों सभी का भला ही करेगा. जिससे हर जगह खुशहाली .व .अमन -चैन .जैसा वातावरण बना..रह सकता है. परन्तु जैसे ही इससे अलग होते है…वैसे ही नकारात्मक उर्जा अपना प्रभाव दिखाने लगती है…और…फिर…….
आज…अपने देश की दशा फिर से बहुत सोचनीय हो गयी है, उसको देखते हुए…. वर्तमान में पुनः श्री कृष्ण जी जैसे अवतार की महती आवश्यकता चारों ओर परिलक्षित हो रही है .
अत: इस ‘ जन्माष्टमी के शुभ अवसर ‘ पर मेरी प्रभु से विनती है- हे प्रभु ! अब देर ना करें …आकर सभी की लाज बचाएं ..सभी का कल्याणकरेंऔर हम सभी को अपनी शुभ कृपा से भरपूरकरें . हे श्री कृष्ण! आपको मेरा कोटि – कोटि बारम्बार प्रणाम !
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ महोत्सव पर सभी को हार्दिक बधाई !
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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