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बहुत इंतजार के बाद …जब आज सुबह काले मेघों.….. ने झमाझम बारिश की, तो बस मैंने उनसे इतना ही कहा…..कि….
देर लगी , आने में ‘तुमको,’
शुक्र है , आज तुम बरसे तो.
प्यासी धरती,प्यासी थी नदिया,
प्यासे थे तरु-खग- म्रग-सब ब्रंदा.
सावन लगा ना हरित महीना,
रास ना आया तनिक सखियां.
प्रक्रति ने ओढी ना धानी चुनरिया,
नभ पे ना देखी सतरंगी धनुहिया.
छोटू की तैरी न कागज़ की नैया ,
चिंकी की भीगी न कपड़ो की गुड़िया.
“ रेनी डे “ के इंतज़ार मे रहे ,
स्कूली सारे बच्चे प्यारे .
कृषक निहारे राह तुम्हारी ,
का बरखा जब कृषी सुखानी ?
माना कि हमसे भूल हुई ,
वन – वन काटे चूक हुई.
मज़बूरी हलात बने सब ,
रोज़ी की सौगात बने यह .
अब ना रूठो बरसो झमाझम ,
बिनती सुनो हे! ’काली’के ‘दूतम’.
दादुर- मोर – पपीहा आलापे ,
‘रागमल्हार’ मधुर सुर गावे .
‘धरती अम्बर मिल’ के झूमे,
प्यारी चंदनिया बदली में घूमे .
‘हम सब जन – मन’ झूमे नाचे ,
जुग्नू की झिलमिल रात सो भावे .
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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