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” माँ के संग ”
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यूँ तो हर बेटी के पास अपने माँ के संग बिताये पलों की ढेरों मीठी यादों का खज़ाना होता है . ऐसा नहीं की खट्टी या तीखी यादें न हों – पर बचपन में माँ की जो बातें खट्टी या तीखी लगतीं थी ..बड़े होने पर वे भी मिठास से भरपूर लगीं. बहुत सी यादों में से एक छोटी सी घटना … का वर्णन मैं यहाँ करूंगी …
मैं कोई लगभग तीन साढ़े तीन वर्ष की थी तब मेरे पैर में कोई अपता जैसा कुछ हो गया था . प्रारंभ में एक दो दिन तो शायद समझ में नहीं आया है क्या है ? क्योंकि ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था .परन्तु उसका इतना दर्द था कि बुखार भी हो गया था दो-तीन दिन बाद जब उसकी लाल – पीली कुछ आकृति दिखाई पड़ी.. तो.. मम्मी ने प्राकृतिक घरेलू उपचार की जगह ‘ मेरे पैर को ‘ डॉ. को दिखाना उचित समझा .
उस समय एक छोटे शहर में एक सरकारी ” जिला चिकित्सालय ” हुआ करता था ; और वह भी बहुत अच्छे हुआ करते थे . डॉ. बहुत होशियार और मरीजो का पूरा ध्यान रखते थे.
मेरे पापा एक हफ्ते से टूर पर थे इसलिए मम्मी को अकेले ही मुझे लेकर जाना था .उस समय काफी गरमी पड़ रही थी . मम्मी ने जल्दी-जल्दी से अत्यावश्यक कार्य निपटाया .मुझे प्यार से खिलाया -पिलाया (क्योंकि मुझको इतना दर्द था कि कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ) फिर भी उन्होंने अपना पूरा प्रयास किया था . मुझे तैयार किया .शायद मेरे हिसाब से यही कोई सुबह के दस बजे होंगे वो मुझे गोद में लेकर एक साफ-सुन्दर तौलिया से मुझे ढक कर कि – तनिक भी धूप न लगे, और अपने हाथों से बनाया एक सुन्दर सा बैग लिया – उसमें एक पानी की बोतल और रुपये -पैसे जो भी.. साथ ले घर से निकलीं .
घर से थोड़ी दूर पर रिक्शा मिल जाता था. घर से ” बड़ा अस्पताल ” लगभग ढाई-तीन किलोमीटर दूर था . उस स्थान पर जैसे मम्मी पहुंची कोई रिक्शा नहीं..थोडा और आगे बढीं एक चौराहा आया पर वहां पर भी कोई रिक्शा नहीं मिला , कुछ जो आते जाते यदि दिखाई दे रहे थे उन सभी में सवारी थी . धूप भी तेज हो गई थी. मैं इतनी छोटी तो नहीं थी की पैदल न चल पाती परन्तु मेरे पैर में तकलीफ और बुखार होने से मैं गोद पर ही रही .एक पल को भी मम्मी ने मुझे गोद से नहीं उतारा. वो मुझे गोद में लिए चली जा रहीं थीं..और एक भी ..खाली रिक्शा नहीं मिला.. तो.. नहीं मिला. मुझे उनकी गोद में अच्छा बहुत अच्छा तो..लग रहा था ..पर ” मेरी मम्मी थक गयीं होंगी ये सोच कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था . मैंने मम्मी से वापस लौट चलने को कहा..क्योंकि मुझे अब अपना दर्द कम मम्मी का दर्द अधिक लग रहा था . .मैंने भगवान् जी से कहा हे भगवान् जी ! जल्दी से आप एक हम लोगों के लिए एक खाली रिक्शा भेज दीजिए .अब भी रिक्शा न मिलने के कारण मुझे गुस्सा भी आने लगा था. ( शायद भगवान एक माँ की ममता उसकी अपने बच्चे के लिए अद्भुत शक्ति दिखाना चाहता था ) तभी मम्मी ने मुझे प्यार से सहलाया ..चुम्मी ली ..और मुस्करा कर बोली तुम रोना मत..अब कोई दूर नहीं… बस अभी आने ही वाला है हॉस्पिटल… (थोड़ी गति उन्होंने बढ़ा दी थी शायद कहीं देर न हो जाए )… .फिर वो कुछ ..(.इतना कि बस मैं सुन सकूं) गाने के अंदाज जैसा बोलने लगी मुझसे ” मैं रिक्शा वाला …दो टांग वाला ..कहाँ चलोगे .. बाबू ..कहाँ चलोगे राजा..” मैं कुछ मतलब तो समझी नहीं लेकिन मुझे मम्मी को खुश ..मुस्कराता देख अच्छा लग रहा था . मेरा मन बहलाती ….बहलाती ..आखिर..वो .. मुझे लेकर हास्पिटल पहुच गईं और देर नहीं हुई थी . डॉ. ने मेरा चेक -अप किया दवा दी..और दो दिन बाद फिर आने को बोला.
आज भी याद आती है वो घटना ..तो मैं अपने आप को उसी अवस्था में ..उसी स्थिति में महसूस करती हूँ .माँ की गोद कितनी प्यारी होती है कितनी न्यारी होती है .
दिन बीतते ..गए.. ..बहुत वर्षों बाद ..शायद..मैंने ट्रांजिस्टर या कहीं से आती आवाज में ..एक ..गाने के बोल सुने … कुछ इस तरह ..” मैं रिक्शा वाला ..दो ..टांग..वाला…” शायद किसी फिल्म का होगा . ये सुनना था….कि. मुझे इस गाने का अर्थ समझ में आया ..और अपनी मम्मी की.. उस समय की छवि ..उनका ममतामयी चेहरा मेरी आँखों के समक्ष आ गया..और मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े.. माँ की ममता … बड़ी गज़ब ..होती है….
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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