मेरे पिताजी की सोच बहुत उत्कृष्ट थी .. on ” Father’s day 17th June 2012 “
बेटियों के भाग्य..से ..
Father’s Day पर अपने पिता द्वारा कही उस एक बात को जो ..मैं कभी भी नहीं भूल सकती… आज इस अवसर पर उसी बात..उसी घटना का ज़िक्र करने जा रहीं हूँ …
बचपन की घटना है. ( पहले थोड़ा संक्षिप्त परिचय देना चाहूँगी .घर में उस समय – दादी – बाबा, माँ – पिताजी और हम तीन बहनें. . )
हम तीनों लड़कियाँ होने के कारण दादी जी हमेशा हम लोगों को डांटती रहतीं थीं किसी ना किसी बात पर. हम बहनों में उम्र का फासला बहुत कम था शायद इसी लिए पल में लड़ाई तो पल में प्यार …कितनी भी लड़ाई हो आपस में ..फिर भी सदा साथ खाना ..साथ सोना होता था …जैसे कोई बात ही ना हो …पर दादी तो हम तीन लड़कियां क्यों ..लड़का क्यों नहीं…? इसी लिए माँ को भी हमलोगों के कारण बहुत कुछ सुनना पड़ता था. माँ बहुत सीधी ..कभी .भी उनसे कुछ ना कहतीं . हमलोगों को ही प्यार से ..रहने ..कभी ना झगड़ने की सीख देंती ..पर बचपन भी कितना अबोध कितना ..चंचल..कितना निर्मल ..होता है……यह तो सब जानतें हैं …
एक दिन की बात माँ ने पिता जी को भोजन की थाली परोसी ..पिता जी ने अभी.. भोजन प्रारंभ ही किया था .. कि दूसरे कमरे से उन्हें अपनी बेटियों का शोर ..शायद उनमें से किसी एक की रोने की भी आवाज थी ..(माँ ने पिता जी को रोकना चाहा पर..) वे तुरंत दौड़े कि देंखें …क्या हुआ बच्चियों को…?
( बस यह देख …दादी जी का पारा….उनका क्रोध ..काफी बढ़ गया..)
हे राम…..ये… लड़कियां हैं… .कि आफत…..जीना हराम कर रखा है …जब देखो तब …… चैन से मेरे बेटे ..को खाना भी नहीं खाने देंती..हैं…..
इतना सुनते ही ..पिता जी रुक गए …( तब तक माँ ने हम सबको …संभल लिया ..था..खेल-खेल–में दोनों दीदियों का आपस में सिर भिड गया था इसी लिए रोने की भी आवाज़ थी).
पिता जी को – अपनी माँ अर्थात मेरी दादी जी द्वारा बोले गए ..वे शब्द …ज़रा भी उचित नहीं लगे…थे …वे हमेशा देखते रहते कि हर दिन वे .. जब ..तब…डांटती रहती हैं ..आखिर बच्चियां हैं ….छोटी ..हैं..नादान हैं…….बच्चे तो ऐसे होते ही हैं ,… फिर माँ तो इतनी ..बड़ी बुज़ुर्ग..समझदार होते हुए भी ……ऐसा बर्ताव….ऐसे शब्द… इस बार वे खुद को रोक नहीं पाए ..और उन्होंने दादी से बड़े ही विनम्र शब्दों में कहा – ” माँ आप क्यों इन बच्चियों को दोष देतीं रहतीं हैं..? कौन..जाने..?….क्या..पता..?….हम..इन्हीं .. बेटियों के भाग्य से खा पी रहें हों …” आज के बाद इनको ऐसा कुछ मत कहियेगा ….
मैं चूंकि दौड़ कर कमरे से अभी- अभी ..बाहर आ गयी थी ..ठीक उसी समय..इस लिए मैंने यह बात सुन ली…थी…उस समय तो पूरी बात ..उसका अर्थ तो समझ में नहीं आया था …बस यूँ लगा कि पिता जी ने दादी से कुछ कहा…है..और अब.. शायद वे..हमलोगों ..पर गुस्सा नहीं करेंगी…हमें बहुत अच्छा लग रहा था … बहुत खुश थे कि चलो अब दादी की डांट से……बचे …. वैसे भी पिता जी हम सभी को बहुत स्नेह करतें थे ..और हमलोग ..हम सभी बहने ..भी पिता जी से बहुत स्नेह रखती थीं .
समय बीतता गया …धीरे – धीरे ..पिता जी की कही…उस बात का अर्थ ..भाव..सब समझ में आ गया ..था……और समझ में आगई थी ..उनकी..विशाल सोच…
आज हमारे … पूजनीय पिता जी तो नहीं हैं परन्तु ऐसा लगता है , मानो वह ऊपर… आकाश से आज भी अपनी स्नेहिल क्षत्रछाया हम पर बनायें हुए हैं .
आज भी उनके द्वारा मिली सीखों से जीवन के हर मोड़ पर प्रकाश .. मिलता है . आज भी उनकी सकारात्मक और महान सोच पर हमारा मस्तक सादर- श्रद्धा से झुक जाता है.
मीनाक्षी श्रीवास्तव
Read Comments