Menu
blogid : 4431 postid : 388

“अस्तित्व “on ” Father’s Day “2012

KALAM KA KAMAL
KALAM KA KAMAL
  • 161 Posts
  • 978 Comments


”  अस्तित्व  ”
Inline image 1
सच में …” धरती मेरी माता पिता आसमान “माँ की गोद धरती जैसी जीवनदायिनी .. ममतामयी ..मखमली होती है तो पिता की स्नेहिल छत्रछाया आसमान सी होती है . और इन दोनों के मध्य कोई भी संतान बेटा हो – चाहे बेटी अपने आप को पूर्णतः सुरक्षित .. शक्तिवान एवं सौभाग्यशाली समझतें हैं  .
वास्तव में पिता का स्थान सर्वोच्च माना गया है . और यह बात बिलकुल सत्य है.

अन्तराष्ट्रीय चलन से  जब Mother ‘s Day  का जश्न मनाया गया तो ठीक वैसे ही Father ‘s Day  को मनाने का क्रम शुरू किया गया .
वैसे  तो  बच्चों को अपने माता – पिता को हर दिन खुश रखना चाहिए .कोई दिखावे जैसी  बात से लेना देना नहीं होता .फिर भी हम जिस समाज में रहतें है उसमें समयानुसार परिवर्तन होते रहतें है यदि उनमें कुछ अच्छें है; तो अपनाने में कोई बुराई नहीं. जैसा कि हम सभी  जानतें हैं कि – अपने भी देश में जून के सेकंड सन्डे  को ” Father ‘s Day ” मनाया जाने लगा है .और इस उपलक्ष्य में jj ने सभी को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया है.

वास्तविकता तो यह है की पिता की महिमा का वर्णन कर पाना ; वो भी चंद शब्दों में असंभव है. पिता की भावनाओं का उनकी स्नेहिल छत्रछाया का सिर्फ अहसास ही किया जा सकता है शब्दों में बयां करना सूरज को दीपक दिखाना  जैसा प्रतीत होता है. परन्तु चलन है कि – थोडा ही सही पर कुछ तो लिखना ही पड़ेगा .

पितृत्व का अहसास – जिस दिन से उसे पता चलता है कि वह पिता / पापा / डैडी ..बनने वाला है उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है. वह तभी से ना जाने कितनी तैयारी करने लगता है . आने वाले बच्चे को कोई तकलीफ़  ना हो  पूरा प्रबंध करता है ..पूरा ध्यान रखता है. उसकी माँ का और उसका दोनों का . नोट:-( अपवाद छोड़ कर ) मैंने इस चीज को बहुत गौर से देखा है ; कि वर्तमान में हर श्रेणी ..वर्ग समुदाय अपने -अपने बेहतर तरीके से इस ओर अर्थात अपने पितृत्व की  ओर  जागरूक हुआ है . इसमें मैं दूरदर्शन का सबसे ज्यादा प्रभाव मानती हूँ ; क्योंकि सरकार की ओर से विभिन्न प्रकार के जागरूकता अभियान  कार्यक्रम और  विज्ञापन से  लोगों में नयी चेतना  आई है . टेलीविजन अधिकतर लोग देखतें हैं . अतः पहले से अधिक आज एक पिता अपने पितृत्व  का अहसास करता है और दायित्वों  को पूर्णतः निभाता है .” पिता बनना भी अपने आपमें एक सौभाग्य की बात होती है .गर्व की बात होती  है .
पिता बनने का क्या सुख होता है , यह एक पिता ही भली – भाँति  समझ सकता है.

Inline image 1

वंश यह भी सच है कि संतान ही उसके  कुल और वंश को बढ़ाती है. और अपनी संतान के लिए एक पिता कुछ भी कर सकता है.
ऐसा भी मानते है कि-  एक पुत्र संतान पैदा कर अपने पितृ ऋण से उबर जाता है ; वर्तमान में नहीं पर …यह कभी प्राचीन अवधारणा रही होगी  .

परमेश्वर तुल्य पिता –अपने देश  में पिता को परमेश्वर समझा जाता है . क्योंकि वही बच्चे के जन्म से लेकर उसके अपने पैरों में खड़े करने तक की सारी जिम्मेदारी  मुख्य रूप से उठाता है .इसके लिए वह अपनी कर्मठता में  कोई कमी नहीं आने देता है ; बल्कि किसी हद तक और बढा ही लेता है. अपने बच्चे को दुनियां की वो सारी अच्छी चीजें… सारे सुख देना चाहता है .अतः प्रारंभ से ही अच्छे स्कूल में डालने से लेकर  आगे की उच्चतर स्तर की शिक्षा तक बेहतर यानि एक नंबर की करता है .जिससे उसका भविष्य स्वर्णिम बन सके .अपने  बच्चे / अपनी संतान के लिए ..उसके सम्पूर्ण विकास के लिए ..तथा उसके सुखी जीवन के लिए वो सारे प्रयास करता है जो भी उसकी सामर्थ्य के भीतर होतें  है ; कभी- २ तो बच्चे की ख़ातिर  खतरा भी मोल ले लेतें हैं ; जैसे -( कोई क़र्ज़ या धन कमाने के गलत तरीके ) वैसे ये बात गलत होगी . क्योंकि अपनी सामर्थ्य  से बाहर जाकर कोई काम करना उचित नहीं होता .कहने का तात्पर्य यह की एक पिता अपनी संतान के लिए  प्यार..संरक्षण ..सहारा  सभी  कुछ देता है जैसे एक ‘ परमेश्वर “.

जीवन का मर्म जहां एक ओर माँ अपनी ममता की छाँव देती है तो दूसरी ओर पिता अपने बच्चे को कठोर परिश्रम करना सिखाता है . निर्भीक  बनाता है. जीवन के प्रति जोश और उत्साह भरता है . कठिन से कठिन परिस्थितियों में डट कर सामना करना सिखाता है .समाधान करना सिखाता है . वो हर बात  ..जानकारी से उसको अवगत करता है जो भविष्य में  महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. उसका एक  प्रेरणात्मक चरित्र  बन सके – एक सच्चा पिता ऐसे अनेक उपाय अवश्य करता है.  कभी दोस्त बन तो कभी सख्त अध्यापक बन तो कभी कुछ …अर्थात वह अपनी संतान के साथ कई प्रकार से व्यवहार करता है .और जीवन का मर्म सिखाता है . वास्तविक जीवन से परिचय करता है . यह एक पिता ही अपनी औलाद के लिए कर सकता है .

Inline image 2


अतः कोई भी संतान चाहे कितना भी पढ़-लिख कर अपने आप को बड़ा समझे पर वह पिता से बड़ी नहीं हो सकती .क्योंकि ‘ पिता ‘ तो जनक है ; उसके अस्तित्व का जन्मदाता .इसलिए वह पिता से कैसे बड़ा हो सकता …है ?

अंत में इतना कहना चाहूँगी बच्चों से .. संतानों  से… कि केवल एक दिन  ” Father’s Day ” ही  ना मनाएं अपितु अपने माता – पिता के  बाकी बचे जीवन के हर  दिन हर उन क्षणों का …  .. celebration करें ..उत्सव मनाएं …उनके सानिध्य का आनंद उठायें..सुख उठायें और अपने द्वारा उनको सुख और आनंद प्रदान करें – अपने आदर – सत्कार और सेवा से उनका मान बढ़ाएं और आशीर्वाद प्राप्त कर अपना आगे का जीवन सुखमय बनायें .. उनके बुढ़ापे से बीमारी से ना खीझें  ना परेशान हो उनको अपमानित करें .यही तो वो समय है जब माता – पिता को उनकी संतानों का आसरा होता है .सहारे  की आवश्यकता होती है.और ये स्थिति क्रमानुसार चलती चली  आ रही है – शायद हर एक की एक दिन ऐसी स्थिति होती ही है .प्रकृति का ऐसा कुछ नियम ही है ..तो फिर…

सोचने की बात है – जब अपनी संतान ही अपने माता – पिता को सहारा ना दे.., उनकी देख – भाल ना करे तो दूसरा  किसको पड़ी है ..? कौन करेगा ..?    .क्यों करेगा..? आज हर व्यक्ति अपने- अपने में ही डूबा है ..खोया है ..व्यस्त है.. या ..मस्त है…किसी को फुर्सत नहीं..

अतः अपने माता – पिता को उनके जीवित रहते  ही जितना सुख दे सकें वही बड़ी बात है ; बाद में उनके नाम से चाहे कुछ भी करें , उनको कोई फर्क नहीं पड़ेगा ….उनको कुछ नहीं प्राप्त हो पायेगा .

देर आये दुरुस्त  आये …मतलब ….  कि  इस बार इस   “Father’s Day ” के  बहाने सही जो अभी भी सोयें है ..वे जरूर जाग जाएँ .विवेकशील बने और अपने पिता के संग हर दिन “Father’s Day ” का जश्न मनाएं .वर्ष भर किसी एक ख़ास दिन की प्रतीक्षा में ना रहें .

शुभकामनाओं के साथ ……





मीनाक्षी श्रीवास्तव









Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh