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सच में ” वह ” कितना विलक्षण है !

KALAM KA KAMAL
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!सच में ” वह ” कितना विलक्षण है !

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हमने कभी ध्यान दिया..? हमने कभी देखा  ? हमने कभी जाना ?
शायद हाँ , पर फिर भी  ” उसे ” समझ नहीं पाए.
जी हाँ , मैं उस ” परमात्मा  ” के बारे में बात कर रहीं हूँ .
वर्तमान में हम सब..  पता नहीं किस दौड़ में शामिल हैं कि ..एक पल भी ठहरने का वक़्त नहीं ..  आखिर क्यों ?
कितना जग जीत लेंगे ..? ये जग किसी का नहीं है ..जिसने इसको बनाया है बस ये उसी का है ; उसी का था और उसी का रहेगा .

आइये पहले उसे… .  देख तो लें …समझ तो लें …महसूस तो कर लें….
यूं तो सारा पसारा ही उसका है . सबमें वो है ; और वो सबमें है ;किन्तु इस सम्पूर्ण पसारे को पूर्णतः शायद हमारे लिए  देख पाना अत्यंत मुश्किल होगा .
पर हाँ , हम अन्य ढंग से उसको देख – सुन और महसूस कर सकतें हैं  . ऐसा मेरा अपना अनुभव है ; बस….
सच में वह कितना विलक्षण है…  आइये देखें कैसे…
वह दिव्य ‘ परमात्मा ‘ सारे ब्रह्माण्ड को निराकार बनने वाला है और इसके साथ ही अपने अन्य विभिन्न सुन्दर स्वरूपों में प्रकट भी  होता  है .
..  मौजूद रहता ..  समाया रहता है….छिपा रहता है.
वो सभी प्राणियों में – सुन्दर रूप – रंग- आकृतियों में है. वो हर द्रश्यमान – अद्रश्यमान;स्पर्शमय ,अनुभूति – अहसासमय में है.
प्राणियों में वो हमसभी के भीतर समाया है . फूलों में अनेक रंगों एवं सुगंध के रूप में समाया हुआ है .वनस्पतियों एवं फलों में स्वाद के रूप में वही है .
वो हर सुन्दर भाव ..कल्पना एवं  उदगार इन सब में भी वही है .सभी प्रकार की कला- संगीतमय ध्वनि -गान अर्थात चित्र .सुर – लय – ताल भी उसका अजब प्रदर्शन है .
पवन में वेग रूप में ; अग्नि में तपिश रूप में एवं जल में द्रव अथवा तरल रूप में वो ही है .कहीं पाषण रूप में कठोर है तो कहीं पुष्पों  सा कोमल.
अर्थात सभी जगह कण-कण में  ; सबमें ..अपने विशेष रूपों एवं ..गुणों से   समाया हुआ है ; छिपा हुआ है कभी फुर्सत निकाले और अहसास करें आश्चर्य के साथ
बहुत आनंद प्राप्त होगा .

परमात्मा का इन सभी में छिपे होने का क्या तात्पर्य है..?
आइये जाने ….शायद कुछ इस प्रकार से….यानि वो इन सब में निहित हो; हमें हमारे जीवन के प्रति अनेक सन्देश देतें हैं ;
और ये सभी उदहारण स्वरूप हैं :
सुबह सूरज उगने से लेकर रात्रि तक – एक नियमित अनुशासन पूर्ण दिन-चर्या एवं कर्म सन्देश छिपा हुआ है.
ठंडी हवाओं के झोंके  – मन- मस्तिष्क  को  ठंडक अर्थात तनाव रहित tention फ्री रहने का सन्देश देते हैं.
सुन्दर रंग-बिरंगे खिले फूल  हमें मुस्कराते रहने का सन्देश देतें है ; और उनकी सुगंध हमें एक सुवासित –
अर्थात यादगार जीवन जीने का सन्देश देती है .
पर्वत हमें ऊंचे अर्थात सर्वश्रेष्ठ कार्य करने का सन्देश देतें हैं .
हरी घास हमें  हिम्मत सिखाती है कि जीवन में  कितनी मुश्किल या तूफ़ान हो अपनी जमीन से जुड़े रहो
अर्थात प्रभु से जुड़े रहो ; घबराओ मत .
फलों से लदी वृक्षों की झुकी  डालियाँ – विनम्रता का पाठ सिखातीं हैं ; चाहे  कितना भी ज्ञान हो ;और धन – दौलत हो
या कुछ भी;पर सदा विनम्र रहना चाहिए , घमंड नहीं करना चाहिए .
कल-कल करतीं नदियाँ ..जीवन में गुनगुनाना सिखातीं हैं .
पक्षियों का दल में रहना – उड़ना खाना  – पीना हमें आपस में मिल- जुल कर  रहने का सन्देश देतें हैं .
बदलते मौसम हमें .. परिस्थिति के अनुसार कार्य करने की प्रेरणा देतें है ; साथ ही जीवन की नीरसता भी दूर करतें हैं .

आइये एक क्षण को तो अपनी इस रफ़्तार में से समय निकालें और   ..उसकी ओर  निहारें  …जिसने हमें बनाया है .
उसने जिस उद्देश्य से हमें बनाया है उस कर्म को  सच्चाई से  करे और उसके द्वारा दिए सभी संदेशो को समझें .
सदा उसके प्रति नत-मस्तक होते हुए कोटि – कोटि नमन के साथ जीवन जीना शुरू करे ;
तभी जीवन धन्य हो सकता है क्योंकि तभी हम उसकी कृपा के पात्र बन सकतें हैं .

नोट:- ( उस दिव्य अलौकिक  परमात्मा के बारे में कोई भी सम्पूर्ण रूप से वर्णन करने में सफल नहीं हो सकता है ; उसने मेरे द्वारा ये तनिक सा प्रयास कराया है ,बस )

मीनाक्षी श्रीवास्तव


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