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” बसंत ”
जाड़े की बर्फीली सर्दी से राहत देने को तन-मन से प्रफुल्लित करनेको “…ये..दस्तक..ये..आगमन…मस्त.मधुमास..”बसंत”..की है.
माँ सरस्वती की वीणा की झंकार..भरी सुर लहरिया ..रंग-बिरंगे.पुष्पों से सजी धरती..सूर्य की स्वर्णिम..रश्मियो..में..सुगंधित..बयार..के.झोंको..से..कोयल की..कूक..पक्षियों..का..कल्रराव..और..भौंरो..के.गुंजान..भरे..गीतों.. के साथ..बसंत हमें..रोम-रोम..से..तरंगित..करने.को..बेताब..है..
अर्थात “बसंत् रितु ” के आगमन से मानो ..संपूर्ण प्रकृति..और.. हम-सभी के भीतर.एक.नूतन.रक्त-संचार..होने लगता है..वैसे तो हर रितु का अपना आनंद ..पर..बसंत…रितु..उन.सबमें सबसे अधिक.रमणीक होती.है.
हिन्दी मास के अनुसार माघ की पंचमी को “बसंत-पंचमी” के नाम से बसंतोत्सव..या बसंत-पर्व मनाया जाता है.
स्कूलों..में माँ.सरस्वती की सर्वप्रथम वंदना .पूजा की जाती है;क्योंकि माँ सरस्वती विद्या-ज्ञान और संगीत की देवी..मानी जाती है तत्पश्चात. सांस्कृतिक कार्यकम भी किए जाते हैं..
हर संगीतज्ञ. माँ शारदे की वंदना-अर्चना करके सुर-संध्या.का.भी..आयोजन करते है इ.स दिन सभी बाद्य- यंत्रों की भी पूजा की जाती है.
इस दिन सभी लोग पीले.. केसर ..बसंती..रंगों के वस्त्र पहनते है..और माना..जाता है कि इस दिन माँ शारदे के भी वस्त्र बसंती / केसर के रंग के धारण किए जाते हैं…और पीला या केसरिया रंग के ही प्रसाद और पकवान बनाए जाते हैं.
देश के कई क्षेत्रों में इस दिन लोग पतंगे भी उड़ाते.हैं .
फ़िरोज़पुर ( पंजाब ) में इस दिन ना केवल पतंग उड़ानें का चलन है अपितु इस दिन पतंगों की प्रतियोगिताए भी आयोजित की जाती हैं .अतः दूर-2 से पतंगबाज़ इसमे हिस्सा लेने आते है.
संगीत-शास्त्र… में ” राग बसंत ” का बड़ा मनमोहक और महत्वपूर्ण राग हैं.
आइए हम सभी ” बसंतोत्सव ” को धूम-धाम से मनाए.
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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