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ऐ मेरे प्यारे वतन
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ऐ मेरे प्यारे वतन.. ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान ..,
तू ही मेरी आरज़ू .. तू ही मेरी आबरू…..
सच् में हमें अपने देश ” भारत ” से बेहद प्यार है ; क्योंकि यह हमें हर प्रकार से सम्बल देता है. हमारा चमन हमारा ईमान ..हमारा गुरुर होता है. जिसने हमें एक पहचान दी आज उसी की “पह्चान” धूल में मिलाने.. स्वयम को ‘नेत्रत्व ‘ में पारंगत समझने वाले नेतागण आतुर बैठे नजर आते हैं.
वर्तमान स्थिति देख लगता है जैसे आज कि हवा-पानी-मिट्टी सब इतनी क्रतिम बनावटी हो गई है कि जन-चेतना तो है पर उसमें वो बात नहीं जो ये गीत को पुन: सार्थकता दे सकें..”ऐ मेरे वतन के लोगो..जरा आँख में भर लो पानी…”
आज हमारे सभी नेता लोग सिर्फ़ एक-दूसरे पर कीचड़ ऊछालने में समय बर्बाद कर रहें और आपसी मत- भेदो को बढ़ावा दे रहें हैं . देश की फिक्र नहीं है.जबकि चाहिए कि सब मिलजुल कर एक होकर कदम-से-कदम badhayen और अपने ” भारत देश ”
की उन्नति में भागीदार बने और अपना भी नाम सम्मान सूचक पद में जोड़ें ; ना कि शर्मसार हो.. आत्म्हत्या की ओर अग्रसर हों .
ये सच है कि इस देश को न हिन्दू ना मुसलमान ना सिख ना ईसाई चाहिए…हर मजहब जिसको प्यारा वो इंसान..वो..जवान..वो. समझदार चाहिये..
आइए हम सब मिलकर और मुख्यतः नौजवान sushikshit वर्ग ” गाँधी जी के तीनों बंदर की भांति आगे आये…आगे बढ़ें.जिससे शीघ्रतिशीघ्र हमारे देश की “छवि” पुनः शोभनीय बन सके फिर से एक स्वच्छ ..निर्मल..nishkalank वातावरण छा जाए सब एक..भारतमाता की संतानें कहला सकें.
यहाँ की धरती पावन गंगा को अविरल.. निर्झर…प्रवाहित करने वाली है…तो कोई बड़ी बात नही कि यहाँ से जन्मे लोग अधिक समय तक…..अर्थात जल्द ही यहाँ के लोगों में भी आपस में एक प्रेम-धारा प्रस्फुटित हो जायेगी..कह्ते हैं ना..दूसरे शब्दों में ग्रहण का काल ज्यादा देर तक नही रहता…है.
बस यूँ समझिये “नवचेतना” का बीज उग चुका है..”थप्पड़..चप्पल ..इसका..उदाहरण..हैं……समझने की बात तो यह है कि…..अब संभल..जाएँ…..सजग..जाएँ..नई ..सुबह..होने.ही वाली..है…..और..”सबसे..आगे…होंगे..हिंदुस्तानी..”.
आप सभी भारतवासियों को ” गणतंत्र- दिवस ” पर हार्दिक बधाई .
जय हिन्द !
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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