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ॐ नम: शिवाय !
ॐ देवाधिदेव महादेव को ही ओंकार कहतें हैं .ओंकार ही शाश्वत सत्य है .
यहाँ मैं अपने वो विचार लिखने जा रही हूँ ;जो मेरे मस्तिष्क में सहसा एक दिन उनके चित्र को लगातार / निरंतर देखते हुए आये थे ….
शंकरजी /शिवजी के सम्पूर्ण चित्र में उनके आभूषणों एवं अलंकारों को देखा तो…
जैसे-१- ‘नाग’ को धारण करना :- नाग =’ नाग जैसी भयानक / भयंकर विपदाओं ‘ से वह बचाते हैं .२-चन्द्रमा का धारण:- शिवजी अपने भक्तों के अशांत चित्त को /मस्तिष्क को शीतलता (ठंडक ) प्रदान करतें हैं अर्थात उनका हर परिस्थिति में आत्मबल बढ़ातें हैं . ३- गंगा का शीश में धारण :- गंगा को धारण करने से तात्पर्य -वो अपने भक्तों के मस्तिष्क में अविरल पवित्र ज्ञान की धारा प्रवाहित करतें रहतें हैं ;उनके तन-मन को पवित्र एवं अमरत्व प्रदान करतें रहतें हैं. ५- कैलाश पर्वत :- नितांत दुर्गम मार्ग -इसके दो अर्थ समझ में आये ;जैसे ईश्वर की भक्ति बहुत कठिन है इस राह में आगे कोई भी मुश्किल से ही आगे बढ़ सकता है दूसरा -जीवन में कितनी ही पहाड़ जैसी मुश्किलें क्यों न हो;”शिव जी” उन सभी मुश्किलों को दूर भगा देतें हैं और अपने भक्तों की रक्षा करतें हैं.” शिवजी की आराधना से हम सभी अपना जीवन सफल एवं सुखद बना सकतें हैं.
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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