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साँझ भई..

KALAM KA KAMAL
KALAM KA KAMAL
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साँझ भई सब घर को लौटे,
मानव – पंछी और चौपे.

खेतों पे लगाता चरही मुराई,
घैला भरे लेके आती लुगाई.

सुलगती अंगीठी से उड़ता धुँआ ,
जलते चिरागों को धुंधला किया .

धुंए की धुंध से व्याकुल हुए ,
मानो सभी को दमे हुए.

मंदिर में पुजारी ने घंटी बजाई,
तभी सभी को “हरी’ याद आई .
मीनाक्षी श्रीवास्तव

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